"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 8" के अवतरणों में अंतर
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गुरु साधु नृप के यहाँ शुद्ध भेंट ले जाय । | गुरु साधु नृप के यहाँ शुद्ध भेंट ले जाय । | ||
दर्शन करने को प्रिया खाली हाथ न जाय ॥ | दर्शन करने को प्रिया खाली हाथ न जाय ॥ | ||
प्रफुलित चित मन मुदित हो पति वचन उर धार | | प्रफुलित चित मन मुदित हो पति वचन उर धार | | ||
ले आई कछु माँग कर चावल मुठ्ठी चार || | ले आई कछु माँग कर चावल मुठ्ठी चार || | ||
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चार परोसन से चावल, | चार परोसन से चावल, | ||
लाकर बोली न अबेर करो, | लाकर बोली न अबेर करो, | ||
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लोटा डोरी कंधे पर धार, | लोटा डोरी कंधे पर धार, | ||
− | कर चले स्मरण गजानन्द का, | + | कर चले स्मरण गजानन्द का, |
दिल लगन लगी हरि दर्शन की, | दिल लगन लगी हरि दर्शन की, | ||
− | कछु पार न था उस आनन्द का | | + | कछु पार न था उस आनन्द का | |
मारग में यहीं विचारते थे, | मारग में यहीं विचारते थे, | ||
− | न द्रव्य लिखा है ललाट मेरे, | + | न द्रव्य लिखा है ललाट मेरे, |
जन्म सुधर जावेगा जब, | जन्म सुधर जावेगा जब, | ||
− | देखूंगा कृष्ण मुरार मेरे | | + | देखूंगा कृष्ण मुरार मेरे | |
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06:45, 20 जून 2016 का अवतरण
गुरु साधु नृप के यहाँ शुद्ध भेंट ले जाय ।
दर्शन करने को प्रिया खाली हाथ न जाय ॥
प्रफुलित चित मन मुदित हो पति वचन उर धार |
ले आई कछु माँग कर चावल मुठ्ठी चार ||
चार परोसन से चावल,
लाकर बोली न अबेर करो,
कह देना हम कंगालों की,
प्रभु भेंट यही स्वीकार करो |
वह दीन दयालु राम कृष्ण,
उत्तर प्रसन्न चित्त देवेंगे,
यह सूक्ष्म भेंट ग़रीबों की,
वह हँसी खुशी से लेवेंगे |
हैं भक्त जनों के ही भगवत,
प्यारे हैं संत महात्मा के,
तुम्हरे वह बाल सखा प्रेमी,
तुम परम भक्त परमात्मा के |
दर्शन से उनके बड़े बड़े,
जन पापी भी उद्धार हुए,
प्रेमी जिनके बन बन कर,
नर भवसागर से पर हुए |
== प्रस्थान और राह में चिन्तन ==
लोटा डोरी कंधे पर धार,
कर चले स्मरण गजानन्द का,
दिल लगन लगी हरि दर्शन की,
कछु पार न था उस आनन्द का |
मारग में यहीं विचारते थे,
न द्रव्य लिखा है ललाट मेरे,
जन्म सुधर जावेगा जब,
देखूंगा कृष्ण मुरार मेरे |