भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 7" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 40: पंक्ति 40:
 
ले आवो मांग किसी से कुछ,
 
ले आवो मांग किसी से कुछ,
 
       झट लावो नहीं अबेर करो ।   
 
       झट लावो नहीं अबेर करो ।   
 
   
 
 
 
 
<poem>
 
<poem>

21:29, 24 जून 2016 के समय का अवतरण

जो कयम चीज नहीं रहती,
      उस चीज का मांगना वाम वृथा,
जीवन मेरा तो भगवत है,
         धन माल और आराम वृथा ।
सब समय हमारा बीत गया,
         यह चौथापन भी आन चला,
श्रीराम कृष्ण रट मगन रहा,
     दुःख सुख का मुझे पता न चला ।
       
अब जाने तू कहती है,
         जाऊँ कैसे सुन प्राण प्रिया,
वहाँ जाकर भेंट करूँगा क्या,
           कैसे होगी पह्चान प्रिया ।
अव्वल तो जाना है मुश्किल,
         जाने को जो तू कहती है,
जाऊं तो क्या भेंट करूं,
         मन शङ्का ये ही रहती है ।
सेना गजरथ घोडे भृत्य,
         कितने लाख सवार वहां,
हैं राजा कृष्ण्चन्द्र प्यारी,
         होता है नित दरबार वहां ।
न जाने कौन महल होगा,
        सिहांसन कृष्ण मुरारी का,
शायद पहचाने न प्रभु,
        यह मेरा वेश भिखारी का ।
मैं खाली हाथ न जाऊंगा,
         भेजो तो भेंट तैयर करो,
ले आवो मांग किसी से कुछ,
       झट लावो नहीं अबेर करो ।