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"सॉरी यार / शहनाज़ इमरानी" के अवतरणों में अंतर

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तुम मुझे भूल गईं न?
 
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एक पल की डबडबाई ख़ामोशी में
 
लहरों में देखती हूँ
 
लहरों में देखती हूँ
 
टूटते सूरज को
 
टूटते सूरज को

12:56, 10 जुलाई 2016 के समय का अवतरण

तुम्हें याद है वो चट्टान
जिस पर बैठ कर
हम चाय पिया करते थे

तुम्हारे इस सवाल से
मेंरे पैर काँपने लगते है
जैसे ऊँचाई से गिरने का डर
मेंरे वजूद पर हावी हो जाता है
तुम मुझे भूल गईं न?

एक पल की डबडबाई ख़ामोशी में
लहरों में देखती हूँ
टूटते सूरज को
कई बार छुपा लेते हैं हम उदासी
और दर्द को घोल देते हैं
दूसरे केमिकल में

झील अचानक सिकुड़ जाती है
एक लड़का दौड़ने लगता है
गिलहरी के पीछे
पकड़ना चाहता है उसे
समय के रेगिस्तान में
खो जाते हैं कई दृश्य

कुछ चीज़ें
एहसास के बाहर ऐसे बदलती हैं
कि हमें पता ही नहीं चलता
सारे दवाबों के बीच ’मैं’
उससे पूछती हूँ अब स्टेशन चलें
नहीं तो तुम्हारी ट्रेन छूट जाएगी।