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22:53, 16 जुलाई 2016 के समय का अवतरण
सभी ये कह रहे हैं तू जहाँ से उठ गई है माँ
मगर मुझे ये बात सबकी झूट लग रही है माँ
वही कहावतें , वही मुहावरे , वही ज़बाँ
मेरी ज़बान से दरअस्ल तू ही बोलती है माँ
तेरी बहू से जब कभी भी मनमुटाव हो गया
मेरी निगाह में उसे तू ही दिखाई दी है माँ
तेरा ही रूप रंग मुझमें है तेरा ही ढंग है
तेरा जमाल मुझमें है तेरा जलाल भी है माँ
तेरे खयाल-ओ-ख़्वाब हैं तेरी दुआएँ साथ हैं
हज़ार रूप में है तू मगर तेरी कमी है माँ