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"अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ / जुगल परिहार" के अवतरणों में अंतर

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राजस्थानी कविता
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मूलः जुगल परिहार
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अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ  
 
अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ  

12:03, 12 मार्च 2008 का अवतरण


अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ

बचपन में मना करती थी

कहा करती थी माँ -

'मत मार बहन को

पाप लगेगा रे, पाप

देख, वह देख

वो काँटों वाला कैक्टस

उगा करत हैं उस में

पापी हाथ'

बच्चे डरते थे तब

लेकिन अब?

अब तो डरता नहीं कोई भी


हाँ,

उगते थे कभी, लेकिन

अब नहीं उगते कैक्टस में हाथ


अनुवादः नीरज दइया