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"आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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16:14, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण

आँखें मुझे तल्वों से वो मलने नहीं देते
अर्मान मेरे दिल का निकलने नहीं देते

ख़ातिर से तेरी याद को टलने नहीं देते
सच है कि हमीं दिल को संभलने नहीं देते

किस नाज़ से कहते हैं वो झुंझला के शब-ए-वस्ल
तुम तो हमें करवट भी बदलने नहीं देते

परवानों ने फ़ानूस को देखा तो ये बोले
क्यों हम को जलाते हो कि जलने नहीं देते

हैरान हूँ किस तरह करूँ अर्ज़-ए-तमन्ना
दुश्मन को तो पहलू से वो टलने नहीं देते

दिल वो है कि फ़रियाद से लबरेज़ है हर वक़्त
हम वो हैं कि कुछ मुँह से निकलने नहीं देते

गर्मी-ए-मोहब्बत में वो है आह से माने
पंखा नफ़स-ए-सर्द का झलने नहीं देते