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"अभी खिलना वाकी है / अभि सुवेदी / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
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09:38, 27 जुलाई 2016 का अवतरण
लगता है
आज रात भर मेँ
सूरज को किसी ने कुरेद दिया ।
जाने क्योँ
आज पौ फुट्ते ही
किसी ने सूरज को
रास्ते पे जमे पानी मेँ फेँक दिया ।
कहते हैँ
यह तो मात्र शुरुवात है।
सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखोँ तक पहुँचना है
सूरज – कल सोचा हुवा पर देख न पाया हुवा दृष्टी,
को अब खुलना है ।
गुसलखाने में कहीँ बादल बन कर रहा हुवा समय
सूरज के स्पर्शोँ को पिघलाने
दौड कर बाहर आ रहा है ।
कहते हैँ
तूम आ तो चुके हो
लेकिन
अभी खिलना बाकीँ है ।