भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"गुस्सा / महमूद दरवेश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महमूद दरवेश |संग्रह=फ़िलीस्तीनी कविताएँ / महमूद दरवेश...) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=महमूद दरवेश | + | |रचनाकार= महमूद दरवेश |
− | |संग्रह= | + | |अनुवादक=अनिल जनविजय |
+ | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
+ | <poem> | ||
काले हो गए | काले हो गए | ||
− | |||
मेरे दिल के गुलाब | मेरे दिल के गुलाब | ||
− | |||
मेरे होठों से निकलीं | मेरे होठों से निकलीं | ||
− | |||
ज्वालाएँ वेगवती | ज्वालाएँ वेगवती | ||
− | |||
क्या जंगल,क्या नर्क | क्या जंगल,क्या नर्क | ||
− | |||
क्या तुम आए हो | क्या तुम आए हो | ||
− | |||
तुम सब भूखे शैतान! | तुम सब भूखे शैतान! | ||
− | |||
हाथ मिलाए थे मैंने | हाथ मिलाए थे मैंने | ||
− | |||
भूख और निर्वासन से | भूख और निर्वासन से | ||
− | |||
मेरे हाथ क्रोधित हैं | मेरे हाथ क्रोधित हैं | ||
− | |||
क्रोधित है मेरा चेहरा | क्रोधित है मेरा चेहरा | ||
− | |||
मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है | मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है | ||
− | + | मुझे क़सम है अपने दुख की | |
− | मुझे | + | |
− | + | ||
− | + | ||
मुझ से मत चाहो मरमराते गीत | मुझ से मत चाहो मरमराते गीत | ||
− | |||
फूल भी जंगली हो गए हैं | फूल भी जंगली हो गए हैं | ||
− | |||
इस पराजित जंगल में | इस पराजित जंगल में | ||
− | |||
मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द | मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द | ||
− | |||
मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए | मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए | ||
− | |||
यही मेरी पीड़ा है | यही मेरी पीड़ा है | ||
− | + | एक अन्धा प्रहार रेत पर | |
− | एक | + | |
− | + | ||
और दूसरा बादलों पर | और दूसरा बादलों पर | ||
− | |||
यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ | यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ | ||
+ | लेकिन कल आएगी क्रान्ति | ||
− | + | '''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय''' | |
+ | </poem> |
03:05, 5 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
काले हो गए
मेरे दिल के गुलाब
मेरे होठों से निकलीं
ज्वालाएँ वेगवती
क्या जंगल,क्या नर्क
क्या तुम आए हो
तुम सब भूखे शैतान!
हाथ मिलाए थे मैंने
भूख और निर्वासन से
मेरे हाथ क्रोधित हैं
क्रोधित है मेरा चेहरा
मेरी रगों में बहते ख़ून में गुस्सा है
मुझे क़सम है अपने दुख की
मुझ से मत चाहो मरमराते गीत
फूल भी जंगली हो गए हैं
इस पराजित जंगल में
मुझे कहने हैं अपने थके हुए शब्द
मेरे पुराने घावों को आराम चाहिए
यही मेरी पीड़ा है
एक अन्धा प्रहार रेत पर
और दूसरा बादलों पर
यही बहुत है कि अब मैं क्रोधित हूँ
लेकिन कल आएगी क्रान्ति
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय