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"अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा | खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा | ||
− | हम आज सरेआम ये | + | हम आज सरेआम ये एलान करेंगे |
− | इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों | + | इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों से रहे नेह |
− | + | हर एक के माँ-बाप का सम्मान करेंगे | |
हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से | हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से | ||
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जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन | जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन | ||
− | सपनोँ से | + | सपनोँ से न हम ख़ुद को परेशान करेंगे |
जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर | जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर | ||
सब मिल के 'रक़ीब' इनका जो गुणगान करेंगे | सब मिल के 'रक़ीब' इनका जो गुणगान करेंगे | ||
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03:08, 6 अगस्त 2016 के समय का अवतरण
अंजान हैं, इक दूजे से पहचान करेंगे
मुश्किल है ये जीवन, इसे आसान करेंगे
खाई है क़सम साथ निभाने की हमेशा
हम आज सरेआम ये एलान करेंगे
इज़्ज़त हो बुज़ुर्गों की तो बच्चों से रहे नेह
हर एक के माँ-बाप का सम्मान करेंगे
हम त्याग, सदाचार, भरोसे की मदद से
हर हाल में परिवार का उत्थान करेंगे
आपस ही में रक्खेंगे फ़क़त, ख़ास वो रिश्ते
हरगिज़ न किसी और का हम ध्यान करेंगे
हर धर्म निभाएंगे हम इक साथ है वादा
तन्हा न कोई आज से अभियान करेंगे
सुख-दुख हो, बुरा वक़्त हो, या कोई मुसीबत
मिल बैठ के हम सबका समाधान करेंगे
जीना है हक़ीक़त के धरातल पे ये जीवन
सपनोँ से न हम ख़ुद को परेशान करेंगे
जन्नत को उतारेंगे यही मंत्र ज़मीं पर
सब मिल के 'रक़ीब' इनका जो गुणगान करेंगे