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"फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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जब, जहाँ चाहिये, बस लगा लीजिये
 
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अनगिनत ख़ूबियाँ, शामियाने में हैं
 
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आज भी शादियाँ, शामियाने में हैं
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ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
 
ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
 
बस यही ख़ामियाँ शामियाने में हैं
 
बस यही ख़ामियाँ शामियाने में हैं
 
 
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02:03, 7 अगस्त 2016 का अवतरण

फिर से शहनाइयाँ, शामियाने में हैं
दो बड़ी कुर्सियाँ, शामियाने में हैं

जब, जहाँ चाहिये, बस लगा लीजिये
अनगिनत ख़ूबियाँ, शामियाने में हैं

रस्मे-जयमाल, फूलों की बरसात और
गूँजती तालियाँ, शामियाने में हैं

साथ सखियों के मिलकर सताती हैं जो
चुलबुली भाभियाँ, शामियाने में हैं

सालियाँ लाएंगी, नेग दो, वर्ना ख़ुद,
ढूंढ लो, जूतियाँ, शामियाने में हैं

प्यार की फब्तियाँ, प्यार की गालियाँ
रात भर मस्तियाँ, शामियाने में हैं

वक़्त-ए-रुख़सत है अब जा रही है दुल्हन
हर तरफ़ सिसकियाँ, शामियाने में हैं

मुद्दतों से यहाँ का रहा है चलन
आज भी शादियाँ, शामियाने में हैं
 
ये छुड़ाता है घर, गाँव, सखियाँ 'रक़ीब'
बस यही ख़ामियाँ शामियाने में हैं