भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जिस्मे खाक़ी में क्या बला है वो / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> जिस्मे ख…)
 
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
 
<poem>
 
<poem>
  
जिस्मे खाक़ी में क्या बला है वो
+
जिस्मे ख़ाकी में क्या बला है वो
 
है कोई चीज़ या हवा है वो
 
है कोई चीज़ या हवा है वो
  
अजनबी है मगर मिला ऐसे
+
ख़ुद को तुम मेरी कायनात कहो
जैसे मुद्दत से जानता है वो
+
दिल को जो छूले ऐसी बात कहो
  
कौन जानेगा इश्क़ से बढ़कर
+
आज मौसम की पहली बारिश में
"हुस्न कहते हैं जिसको क्या है वो"
+
तन्हा कैसे कटेगी रात कहो
  
डोर आँखों में वो गुलाबी सी
+
पास बैठो कभी तो पहलू में  
जैसे चढ़ता हुआ नशा है वो
+
कुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो
  
मंज़िले इश्क़ पार करने को
+
आज वो बेनक़ाब निकले हैं
जान जोखिम में डालता है वो
+
आज की रात चाँद रात कहो
  
दिल में चाहत जुबाँ पे कड़वी बात
+
हो गया होगा रो के दिल हल्का
हुस्न वालों की इक अदा है वो
+
ग़म से क्या मिल गयी नजात कहो
  
बेवफ़ा कह दिया 'रक़ीब' जिसे
+
ज़िन्दगी में कहाँ सुकूने-दिल
जान लें आप बावफ़ा है वो
+
मौत को राहते-हयात कहो
 +
 
 +
ख़ाक हासिद हुआ है जल के 'रक़ीब'
 +
किसने खाई है किससे मात कहो
 
</poem>
 
</poem>

04:14, 7 अगस्त 2016 के समय का अवतरण


जिस्मे ख़ाकी में क्या बला है वो
है कोई चीज़ या हवा है वो

ख़ुद को तुम मेरी कायनात कहो
दिल को जो छूले ऐसी बात कहो

आज मौसम की पहली बारिश में
तन्हा कैसे कटेगी रात कहो

पास बैठो कभी तो पहलू में
कुछ हमारी कुछ अपनी बात कहो

आज वो बेनक़ाब निकले हैं
आज की रात चाँद रात कहो

हो गया होगा रो के दिल हल्का
ग़म से क्या मिल गयी नजात कहो

ज़िन्दगी में कहाँ सुकूने-दिल
मौत को राहते-हयात कहो

ख़ाक हासिद हुआ है जल के 'रक़ीब'
किसने खाई है किससे मात कहो