भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वार्ता:युद्ध-विराम / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'''हमें बल दो, ''देशवासियो'','''  '''  हमें ज्योति दो, ''देशवासियो'',''' असली किताब में यूँ लिखा है। मैंने इसे '''देशवासियों''' कर दिया यानि '''यो''' पर बिंदी लगा दी। मुझे लगता है ऐसा करना ग़लत है क्योंकि शायद संबोधन विभक्ति में '''देशवासियो''' ही सही रूप हो।
 
'''हमें बल दो, ''देशवासियो'','''  '''  हमें ज्योति दो, ''देशवासियो'',''' असली किताब में यूँ लिखा है। मैंने इसे '''देशवासियों''' कर दिया यानि '''यो''' पर बिंदी लगा दी। मुझे लगता है ऐसा करना ग़लत है क्योंकि शायद संबोधन विभक्ति में '''देशवासियो''' ही सही रूप हो।
  
कोश पर प्रदीप की कविता [[ऐ मेरे वतन के लोगो / प्रदीप]] के शीर्षक से है पर इसकी पहली सतर में ''लोगों'' लिखा हुआ है।
+
कोश पर प्रदीप की कविता [[ऐ मेरे वतन के लोगो / प्रदीप]] के शीर्षक से है पर इसकी पहली सतर में ''लोगों'' लिखा हुआ है। आप बताइए।
  
 
[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १०:०४, ३१ मार्च २००८ (UTC)
 
[[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]] --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|Sumitkumar kataria]] १०:०४, ३१ मार्च २००८ (UTC)

15:54, 31 मार्च 2008 के समय का अवतरण

हमें बल दो, देशवासियो, हमें ज्योति दो, देशवासियो, असली किताब में यूँ लिखा है। मैंने इसे देशवासियों कर दिया यानि यो पर बिंदी लगा दी। मुझे लगता है ऐसा करना ग़लत है क्योंकि शायद संबोधन विभक्ति में देशवासियो ही सही रूप हो।

कोश पर प्रदीप की कविता ऐ मेरे वतन के लोगो / प्रदीप के शीर्षक से है पर इसकी पहली सतर में लोगों लिखा हुआ है। आप बताइए।

वार्ता --Sumitkumar kataria १०:०४, ३१ मार्च २००८ (UTC)