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एक आशीर्वाद / दुष्यंत कुमार

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जा तेरे स्वप्न बड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।<br>भावना की गोद से उतर कर<br>जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।<br> चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये<br>रूठना मचलना सीखें।<br> हँसें<br>मुस्कुराऐं<br>मुस्कुराएँगाएँ।गाऐं।<br>हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें<br>उँगली जलायें।<br>जलाएँ।अपने पाँव पर खड़े हों।<br>जा तेरे स्वप्न बड़े हों।<br><br/poem>
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