भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीरो / राजस्थानी

33 bytes removed, 01:53, 9 सितम्बर 2016
'''{{KKGlobal}}{{KKLokRachna|रचनाकार: =अज्ञात ''' }}{{KKCatRajasthaniRachna}}<poem>
मत बाओ म्हारा परनिया जीरो
 
मत बाओ म्हारा परनिया जीरो
 
यो जीरो जीव रो बैरी रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो..........  
पाडत कर पीरा पगला रे गया
 
म्हारा पडला घस गिया चांदी रा
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो..... 
यो जीरो जीव रो बैरी रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो............ 
सो रूपया की जोड़ी थांकी
 
म्हारो देवर भाग्यो लाखिनो
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो..... 
यो जीरो जीव रो बैरी रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो............ 
पीलो ओढ़ पीयरे चाली
 
म्हारो जीरो पड़ गयो पीलो रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो..... 
यो जीरो जीव रो बैरी रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो............  
काजल घाल महेल मे चाली
 
म्हारो जीरो पड़ गयो कालो रे
 मत बाओ म्हारा परनिया जीरो..... 
यो जीरो जीव रो बैरी रे
 
मत बाओ म्हारा परनिया जीरो
</poem>