भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"लिखा है... मुझको भी लिखना पड़ा है / अख़्तर नाज़्मी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
(हिज्जे) |
||
पंक्ति 17: | पंक्ति 17: | ||
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है <br><br> | सुकूँ का बस यही एक रास्ता है <br><br> | ||
− | क़यामत | + | क़यामत देखिए मेरी नज़र से <br> |
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है<br><br> | सवा नेज़े पे सूरज आ गया है<br><br> | ||
पंक्ति 24: | पंक्ति 24: | ||
अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने<br> | अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने<br> | ||
− | ये किसका नाम | + | ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है<br><br> |
− | बहुत रोका है " | + | बहुत रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने <br> |
मगर पानी को रास्ता मिल गया है | मगर पानी को रास्ता मिल गया है |
17:18, 2 मई 2008 का अवतरण
लिख है..... मुझको भी लिखना पड़ा है
जहाँ से हाशिया छोड़ा गया है
अगर मानूस है तुम से परिंदा
तो फिर उड़ने को पर क्यूँ तौलता है
कहीं कुछ है... कहीं कुछ है... कहीं कुछ
मेरा सामन सब बिखरा हुआ है
मैं जा बैठूँ किसी बरगद के नीचे
सुकूँ का बस यही एक रास्ता है
क़यामत देखिए मेरी नज़र से
सवा नेज़े पे सूरज आ गया है
शजर जाने कहाँ जाकर लगेगा
जिसे दरिया बहा कर ले गया है
अभी तो घर नहीं छोड़ा है मैंने
ये किसका नाम तख़्ती पर लिखा है
बहुत रोका है "नाज़्मी" पत्थरों ने
मगर पानी को रास्ता मिल गया है