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"कुण्डलियाँ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'" के अवतरणों में अंतर

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रामधारी    केॅ  जानियै  पड़रिया    आवास
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1
शंभुगंज बाँका  जिला, डिग्री एम. एड. पास ।
+
गंगा सुखलोॅ जाय छै, खोजोॅ मिली उपाय
डिग्री  एम. एड. पास  फटाफट  अंगिका बोलै
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नै तेॅ बालू मेॅ सुनोॅ, जैथांै गंग विलाय
धरम-करम  के  राज  नुकैलोॅ  जेकरा  खोलै
+
जैथौं गंग विलाय, रसातल मॅे सब जैभेॅ
‘प्रोग्रामर’  के  हाथ-गोड़  में  लागलै  बाघी
+
लागै खेत हरंठ, कहाॅे कोन्चीं सब खैभे
सोचै  छै  हिनकोॅ  विचार केॅ  जागी-जागी ।
+
चैके रोज ‘सुधीर’, लेटैलोॅ धोती-अंगा
 +
करोॅ सफाई खूब, बनाबो निर्मल गंगा।
  
भाव-प्रसून, गगन  घटा  छपै-बटै  सन  पाँच
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2
आतम  में  परमातम  कथा  मधुरिका  साँच
+
बूढाॅे हमरो बाप छै, बूढ़ी हमरी माय
कथा मधुरिका साँच । साँच केॅ आँच नै आवै
+
बिन दाॅतोॅ के भात कॅे, मत्थी-मत्थी खाय
हायकु  सें  हर  अंग  प्रेमी  के  छटा  सजावै
+
मत्थी-मत्थी खाय, पेट तेॅ गुड़-गुड़ बोलै
कहै  गॅवार  कि  कवि  ‘प्रोग्रामर’  भारी-भरकम
+
बच्चा बुतरू बात-बात मॅे लोलै-दोलै
हिन्दी  के  साथें  लहरैतै  अंगिका  परचम ।
+
बोर्सी भरै ‘सुधीर’, अमारी सुख्खल ढूढ़ोॅ
 +
बैठी तापोॅ आग, बथानी बच्चा-बूढ़ाॅे।
  
सद्गुरू श्री  सत्पाल जी, भक्त  श्रद्धा के फूल
+
3
मानवता  रग-रग  भरल, सेवा  ही  बस  मूल
+
बिजली पानी चाहियो, सबके छै दरकार
सेवा  ही  बस  मूल  बड़ा  दिलदार हृदय  के
+
खुद्धन बिजली पोल पर, की करतै सरकार
मन  में नै छोॅ-पाँच  लागै डोॅर मुदय  के
+
की करतै सरकार, तार संे तार निकालै
सत्य  बात  केॅ सात  तरह  सें  बोलै  बाजै
+
छोटका लोग मिली के, इ बड़का के पालै
गुरू  के कृपा  सें  जहाँ  भी जाय विराजै ।
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धक-धक प्राण ‘सुधीर’ देहरी पर छै कजली
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जनता बनै गुलाम, घरो के रानी बिजली।
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4
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गाभिन गाय बजार मॅे, लावारिस मड़राय
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मालिक गारी दुध सब, साँझै भोरे खाय
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साँझै भोरे खाय, मगर पानी नै सानी
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गाय निंभाबै माय के रिस्ता कानी-कानी
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कह ‘सुधीर’ समझाय, गोसाही गाय बाघिन
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मालिक नै बुझथौन, नै होतै सुद्धि गाभिन।
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5
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अगुआ के चलती अभी, लगन बड़ी पुरजोर
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बरतुहार छोटाॅे-बड़ाॅे, लागोॅ सबके गोड़
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लागोॅ सबके गोड़, मगर अड़चन पॅे अड़चन
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माँगै मेॅ की लाज, समझतै समधी समधन
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अकबक करै ‘सुधीर’ जेठ में खेलै फगुआ
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धोती लाले-लाल, पान चभलाबै अगुआ।
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6
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चिड़ियाँ चुनमुन खेत सॅे गेलै कहा बिलाय
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फींका धेनू गाय के माखन दूध मलाय
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माखन दूध मलाय मिलावट सोची-सोची
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अनजाने सब लोग, खाय छे कोची कोची
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सँम्भरी के रहभै ‘सुधीर’ ते खूब बढ़ियाँ
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नै ते वहिने हाल, जना खेतोॅ के चिड़ियाँ।
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7
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चलतें-चलतें चाँदनी, काटै-साटै धोॅर
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छै तारा के बीच में, तैयो लागै डोॅर
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तैयो लागै डोॅर, बदरबा नुकबा-चोरी
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देखी हँसै चकोर, हसाबै खूब चकोरी
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दै ‘सुधीर‘ समझाय, चाँद केॅ देखलौं गलतें
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हुयै अमावस और, पुरनिमां के चलतें।
 
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22:40, 15 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

1
गंगा सुखलोॅ जाय छै, खोजोॅ मिली उपाय
नै तेॅ बालू मेॅ सुनोॅ, जैथांै गंग विलाय
जैथौं गंग विलाय, रसातल मॅे सब जैभेॅ
लागै खेत हरंठ, कहाॅे कोन्चीं सब खैभे
चैके रोज ‘सुधीर’, लेटैलोॅ धोती-अंगा
करोॅ सफाई खूब, बनाबो निर्मल गंगा।

2
बूढाॅे हमरो बाप छै, बूढ़ी हमरी माय
बिन दाॅतोॅ के भात कॅे, मत्थी-मत्थी खाय
मत्थी-मत्थी खाय, पेट तेॅ गुड़-गुड़ बोलै
बच्चा बुतरू बात-बात मॅे लोलै-दोलै
बोर्सी भरै ‘सुधीर’, अमारी सुख्खल ढूढ़ोॅ
बैठी तापोॅ आग, बथानी बच्चा-बूढ़ाॅे।

3
बिजली पानी चाहियो, सबके छै दरकार
खुद्धन बिजली पोल पर, की करतै सरकार
की करतै सरकार, तार संे तार निकालै
छोटका लोग मिली के, इ बड़का के पालै
धक-धक प्राण ‘सुधीर’ देहरी पर छै कजली
जनता बनै गुलाम, घरो के रानी बिजली।

4
गाभिन गाय बजार मॅे, लावारिस मड़राय
मालिक गारी दुध सब, साँझै भोरे खाय
साँझै भोरे खाय, मगर पानी नै सानी
गाय निंभाबै माय के रिस्ता कानी-कानी
कह ‘सुधीर’ समझाय, गोसाही गाय बाघिन
मालिक नै बुझथौन, नै होतै सुद्धि गाभिन।


5
अगुआ के चलती अभी, लगन बड़ी पुरजोर
बरतुहार छोटाॅे-बड़ाॅे, लागोॅ सबके गोड़
लागोॅ सबके गोड़, मगर अड़चन पॅे अड़चन
माँगै मेॅ की लाज, समझतै समधी समधन
अकबक करै ‘सुधीर’ जेठ में खेलै फगुआ
धोती लाले-लाल, पान चभलाबै अगुआ।

6
चिड़ियाँ चुनमुन खेत सॅे गेलै कहा बिलाय
फींका धेनू गाय के माखन दूध मलाय
माखन दूध मलाय मिलावट सोची-सोची
अनजाने सब लोग, खाय छे कोची कोची
सँम्भरी के रहभै ‘सुधीर’ ते खूब बढ़ियाँ
नै ते वहिने हाल, जना खेतोॅ के चिड़ियाँ।
7
चलतें-चलतें चाँदनी, काटै-साटै धोॅर
छै तारा के बीच में, तैयो लागै डोॅर
तैयो लागै डोॅर, बदरबा नुकबा-चोरी
देखी हँसै चकोर, हसाबै खूब चकोरी
दै ‘सुधीर‘ समझाय, चाँद केॅ देखलौं गलतें
हुयै अमावस और, पुरनिमां के चलतें।