"कुण्डलियाँ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'" के अवतरणों में अंतर
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− | + | गंगा सुखलोॅ जाय छै, खोजोॅ मिली उपाय | |
− | + | नै तेॅ बालू मेॅ सुनोॅ, जैथांै गंग विलाय | |
− | + | जैथौं गंग विलाय, रसातल मॅे सब जैभेॅ | |
− | + | लागै खेत हरंठ, कहाॅे कोन्चीं सब खैभे | |
− | + | चैके रोज ‘सुधीर’, लेटैलोॅ धोती-अंगा | |
+ | करोॅ सफाई खूब, बनाबो निर्मल गंगा। | ||
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− | + | बूढाॅे हमरो बाप छै, बूढ़ी हमरी माय | |
− | + | बिन दाॅतोॅ के भात कॅे, मत्थी-मत्थी खाय | |
− | + | मत्थी-मत्थी खाय, पेट तेॅ गुड़-गुड़ बोलै | |
− | + | बच्चा बुतरू बात-बात मॅे लोलै-दोलै | |
− | + | बोर्सी भरै ‘सुधीर’, अमारी सुख्खल ढूढ़ोॅ | |
+ | बैठी तापोॅ आग, बथानी बच्चा-बूढ़ाॅे। | ||
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− | + | बिजली पानी चाहियो, सबके छै दरकार | |
− | + | खुद्धन बिजली पोल पर, की करतै सरकार | |
− | + | की करतै सरकार, तार संे तार निकालै | |
− | + | छोटका लोग मिली के, इ बड़का के पालै | |
− | + | धक-धक प्राण ‘सुधीर’ देहरी पर छै कजली | |
+ | जनता बनै गुलाम, घरो के रानी बिजली। | ||
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+ | गाभिन गाय बजार मॅे, लावारिस मड़राय | ||
+ | मालिक गारी दुध सब, साँझै भोरे खाय | ||
+ | साँझै भोरे खाय, मगर पानी नै सानी | ||
+ | गाय निंभाबै माय के रिस्ता कानी-कानी | ||
+ | कह ‘सुधीर’ समझाय, गोसाही गाय बाघिन | ||
+ | मालिक नै बुझथौन, नै होतै सुद्धि गाभिन। | ||
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+ | अगुआ के चलती अभी, लगन बड़ी पुरजोर | ||
+ | बरतुहार छोटाॅे-बड़ाॅे, लागोॅ सबके गोड़ | ||
+ | लागोॅ सबके गोड़, मगर अड़चन पॅे अड़चन | ||
+ | माँगै मेॅ की लाज, समझतै समधी समधन | ||
+ | अकबक करै ‘सुधीर’ जेठ में खेलै फगुआ | ||
+ | धोती लाले-लाल, पान चभलाबै अगुआ। | ||
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+ | चिड़ियाँ चुनमुन खेत सॅे गेलै कहा बिलाय | ||
+ | फींका धेनू गाय के माखन दूध मलाय | ||
+ | माखन दूध मलाय मिलावट सोची-सोची | ||
+ | अनजाने सब लोग, खाय छे कोची कोची | ||
+ | सँम्भरी के रहभै ‘सुधीर’ ते खूब बढ़ियाँ | ||
+ | नै ते वहिने हाल, जना खेतोॅ के चिड़ियाँ। | ||
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+ | चलतें-चलतें चाँदनी, काटै-साटै धोॅर | ||
+ | छै तारा के बीच में, तैयो लागै डोॅर | ||
+ | तैयो लागै डोॅर, बदरबा नुकबा-चोरी | ||
+ | देखी हँसै चकोर, हसाबै खूब चकोरी | ||
+ | दै ‘सुधीर‘ समझाय, चाँद केॅ देखलौं गलतें | ||
+ | हुयै अमावस और, पुरनिमां के चलतें। | ||
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22:40, 15 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
1
गंगा सुखलोॅ जाय छै, खोजोॅ मिली उपाय
नै तेॅ बालू मेॅ सुनोॅ, जैथांै गंग विलाय
जैथौं गंग विलाय, रसातल मॅे सब जैभेॅ
लागै खेत हरंठ, कहाॅे कोन्चीं सब खैभे
चैके रोज ‘सुधीर’, लेटैलोॅ धोती-अंगा
करोॅ सफाई खूब, बनाबो निर्मल गंगा।
2
बूढाॅे हमरो बाप छै, बूढ़ी हमरी माय
बिन दाॅतोॅ के भात कॅे, मत्थी-मत्थी खाय
मत्थी-मत्थी खाय, पेट तेॅ गुड़-गुड़ बोलै
बच्चा बुतरू बात-बात मॅे लोलै-दोलै
बोर्सी भरै ‘सुधीर’, अमारी सुख्खल ढूढ़ोॅ
बैठी तापोॅ आग, बथानी बच्चा-बूढ़ाॅे।
3
बिजली पानी चाहियो, सबके छै दरकार
खुद्धन बिजली पोल पर, की करतै सरकार
की करतै सरकार, तार संे तार निकालै
छोटका लोग मिली के, इ बड़का के पालै
धक-धक प्राण ‘सुधीर’ देहरी पर छै कजली
जनता बनै गुलाम, घरो के रानी बिजली।
4
गाभिन गाय बजार मॅे, लावारिस मड़राय
मालिक गारी दुध सब, साँझै भोरे खाय
साँझै भोरे खाय, मगर पानी नै सानी
गाय निंभाबै माय के रिस्ता कानी-कानी
कह ‘सुधीर’ समझाय, गोसाही गाय बाघिन
मालिक नै बुझथौन, नै होतै सुद्धि गाभिन।
5
अगुआ के चलती अभी, लगन बड़ी पुरजोर
बरतुहार छोटाॅे-बड़ाॅे, लागोॅ सबके गोड़
लागोॅ सबके गोड़, मगर अड़चन पॅे अड़चन
माँगै मेॅ की लाज, समझतै समधी समधन
अकबक करै ‘सुधीर’ जेठ में खेलै फगुआ
धोती लाले-लाल, पान चभलाबै अगुआ।
6
चिड़ियाँ चुनमुन खेत सॅे गेलै कहा बिलाय
फींका धेनू गाय के माखन दूध मलाय
माखन दूध मलाय मिलावट सोची-सोची
अनजाने सब लोग, खाय छे कोची कोची
सँम्भरी के रहभै ‘सुधीर’ ते खूब बढ़ियाँ
नै ते वहिने हाल, जना खेतोॅ के चिड़ियाँ।
7
चलतें-चलतें चाँदनी, काटै-साटै धोॅर
छै तारा के बीच में, तैयो लागै डोॅर
तैयो लागै डोॅर, बदरबा नुकबा-चोरी
देखी हँसै चकोर, हसाबै खूब चकोरी
दै ‘सुधीर‘ समझाय, चाँद केॅ देखलौं गलतें
हुयै अमावस और, पुरनिमां के चलतें।