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"चिट्ठी पढाबै / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'" के अवतरणों में अंतर
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00:13, 16 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
चिट्ठी पढाबै डाक सेॅ मजमून के बगैर
जैसैं दही-बड़ा मिलै छै नून के बगैर।
हाकिम बिहाने धूप मेॅ बैठलोॅ उदास छै
चहकी केॅ टोकैॅ चिड़ियाँ कानून के बगैर।
बी.पी. बढलका टन्न सेॅ मरलै धनाट जे
जीये वहाँ पड़ोस में कुछ खून के बगैर।
गाली मेॅ जानबर केॅ सब दिन बुरा-भला
लेकिन कहाँ छै आदमी नाखून के बगैर।
खेतोॅ मेॅ मचानी पर सुनसान जों रहै
गाबै उदास मोन भी गम, धून के बगैर।