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"मेरे साहिब-जनाब की खुशबू / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर
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आ रही बे-हिसाब की खुशबू
मेरे साहिब-ज़नाब की खुशबू I
उनकी खुशबू के सामने फीकी
गुल-हज़ारा गुलाब की खुशबू I
उनके छूने से , सुर महकते हैं
गूँज उठती , रबाब की खुशबू I
सारी दुनिया के इत्र एक तरफ़
और इक उनके बाब की खुशबू I
हुस्ने-शादाब , मैं न होती 'दीप'
वो न होते , शबाब की खुशबू I