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"ज़िन्दगी शराब की दुकान पे चली गई / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

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21:57, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण

 
ज़िन्दगी ,शराब की दुकान पे चली गई
कशमकश उठी-चली , उड़ान पे चली गई
 
हाय..बा-दिली कहाँ लुढ़क रही है बेसबब
देखते हैं आज किस ढलान पे चली गई
 
नफ़रतों का कारवाँ बढ़ा तो और बढ़ गया
रस्मो-राहियत अभी गठान पे चली गई
 
एक ही मिली कोई सुकून जिसके पास था
और कम्बख़त वो आसमान पे चली गई
 
दोज़खी से राब्ता कोई नहीं था ‘दीप’ जी !
क्या बताएँ ज़हनियत गुमान पे चली गई I