भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जितना-जितना बहरा होता जाता हूँ / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप' }} {{KKCatGhazal}} <poem> जितन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

22:08, 16 सितम्बर 2016 का अवतरण

 
जितना-जितना बहरा होता जाता हूँ
उतना-उतना गहरा होता जाता हूँ I
 
देख देख कर बच्चों की अठखेली को
मैं , दरिया से सहरा होता जाता हूँ I
 
माज़ी , दिल पे बोझ बढ़ाए जाता है
सर से पा तक दुहरा होता जाता हूँ I