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"मैं भी गुम माज़ी में था / प्रखर मालवीय 'कान्हा'" के अवतरणों में अंतर

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04:23, 18 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

मैं भी गुम माज़ी में था
दरिया भी जल्दी में था

एक बला का शोरो-गुल
मेरी ख़ामोशी में था

भर आयीं उसकी आँखें
फिर दरिया कश्ती में था

एक ही मौसम तारी क्यों
दिल की फुलवारी में था?

सहरा सहरा भटका मैं
वो दिल की बस्ती में था

लम्हा लम्हा ख़ाक हुआ
मैं भी कब जल्दी में था?