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"मेरे साहिब-जनाब की खुशबू / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर

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आ रही बे-हिसाब की खुशबू
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आ रही बे- हिसाब की ख़ुशबू
मेरे साहिब-ज़नाब की खुशबू I
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मेरे साहिब- जनाब की ख़ुशबू
 
   
 
   
उनकी खुशबू के सामने फीकी
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उनकी ख़ुशबू के सामने फीकी
गुल-हज़ारा गुलाब की खुशबू I
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गुल- हज़ारा गुलाब की ख़ुशबू
 
   
 
   
 
उनके छूने से , सुर महकते हैं  
 
उनके छूने से , सुर महकते हैं  
गूँज उठती , रबाब की खुशबू I
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गूँज उठती , रबाब की ख़ुशबू
 
   
 
   
 
सारी दुनिया के इत्र एक तरफ़
 
सारी दुनिया के इत्र एक तरफ़
और इक उनके बाब की खुशबू I
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और इक उनके बाब की ख़ुशबू
 
   
 
   
हुस्ने-शादाब , मैं न होती 'दीप'   
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हुस्ने-शादाब, मैं न होती 'दीप'   
वो न होते , शबाब की खुशबू I
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वो न होते, शबाब की खुशबू  
 
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20:04, 18 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण

 

आ रही बे- हिसाब की ख़ुशबू
मेरे साहिब- जनाब की ख़ुशबू
 
उनकी ख़ुशबू के सामने फीकी
गुल- हज़ारा गुलाब की ख़ुशबू
 
उनके छूने से , सुर महकते हैं
गूँज उठती , रबाब की ख़ुशबू
 
सारी दुनिया के इत्र एक तरफ़
और इक उनके बाब की ख़ुशबू
 
हुस्ने-शादाब, मैं न होती 'दीप'
वो न होते, शबाब की खुशबू