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"रोज़ के रोज़ बरगलाता है / दीपक शर्मा 'दीप'" के अवतरणों में अंतर
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रोज़ के रोज़ बरगलाता है | रोज़ के रोज़ बरगलाता है | ||
− | नाम अपना ख़ुदा बताता है | + | नाम अपना ख़ुदा बताता है |
− | कौन उससे बड़ा फ़रेबी है ? | + | कौन उससे बड़ा फ़रेबी है? |
− | बात बे-बात तिलमिलाता है | + | बात बे- बात तिलमिलाता है |
आईना सामने न रखिएगा | आईना सामने न रखिएगा | ||
− | ख़ौफ़ कोई , उसे सताता है | + | ख़ौफ़ कोई, उसे सताता है |
− | आपकी चोट मेरे जैसी है ? | + | आपकी चोट मेरे जैसी है? |
− | ख़ैर...दोनों का एक दाता है | + | ख़ैर...दोनों का एक दाता है |
जानता हूँ कि कुफ़्र बोलेगा | जानता हूँ कि कुफ़्र बोलेगा | ||
− | पर | + | पर बड़े प्यार से बुलाता है I |
एक अच्छी ये बात है उसमें | एक अच्छी ये बात है उसमें | ||
− | भूलता है , तो भूल जाता है | + | भूलता है, तो भूल जाता है |
दिन-उजाले में हम तवायफ़ हैं | दिन-उजाले में हम तवायफ़ हैं | ||
− | रात होते ही चला आता है | + | रात होते ही चला आता है |
− | वाह-वाही , हुआँ-हुआँ जैसी | + | वाह-वाही, हुआँ- हुआँ जैसी |
− | आपके कुछ समझ में आता है ? | + | आपके कुछ समझ में आता है? |
एक पागल है ‘दीप’ कहता है | एक पागल है ‘दीप’ कहता है | ||
− | अर्श-वाला भी घूस खाता है | + | अर्श- वाला भी घूस खाता है |
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20:17, 18 सितम्बर 2016 के समय का अवतरण
रोज़ के रोज़ बरगलाता है
नाम अपना ख़ुदा बताता है
कौन उससे बड़ा फ़रेबी है?
बात बे- बात तिलमिलाता है
आईना सामने न रखिएगा
ख़ौफ़ कोई, उसे सताता है
आपकी चोट मेरे जैसी है?
ख़ैर...दोनों का एक दाता है
जानता हूँ कि कुफ़्र बोलेगा
पर बड़े प्यार से बुलाता है I
एक अच्छी ये बात है उसमें
भूलता है, तो भूल जाता है
दिन-उजाले में हम तवायफ़ हैं
रात होते ही चला आता है
वाह-वाही, हुआँ- हुआँ जैसी
आपके कुछ समझ में आता है?
एक पागल है ‘दीप’ कहता है
अर्श- वाला भी घूस खाता है