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"मत पूछिए फुरसत की घड़ियाँ / अल्हड़ बीकानेरी" के अवतरणों में अंतर

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(अल्हड बीकानेरी की हास्य कविता)
 
(अल्हड बीकानेरी की हास्य कविता)
 
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होठों से छुआकर मूंगफली  
 
होठों से छुआकर मूंगफली  
 
माशूक को मारा करते हैं।
 
माशूक को मारा करते हैं।
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03:05, 1 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण

मत पूछिए फुरसत की घड़ियाँ
हम कैसे गुजारा करते हैं
होंठों से छुआकर मूंगफली
माशूक को मारा करते हैं।

मारी थी जो हमने मूंगफली
वो उनके डिअर डैडी को लगी।

( फिर क्या हुआ )

छत पे बैठे थे ले के मूंगफली का थैला
आ गई सामने खिड़की पे हमारी लैला।
हमने सोचा के उनको कोई निशानी दे दें।
अधखिले फूल को भरपूर जवानी दे दें।

ग़ुफ़्तगू की नई तरकीब निकाली हमने
ले के एक मूंगफली उनपे उछाली हमने।
इससे पहले वो इस मूंगफली को लपके
उनके डैडी लिए बंदूक वहां आ टपके।

हम छुप गए जा के पड़ोसन के घुसलखाने में।

(अब सुनियेगा)

मारी थी जो हमने मूंगफली
वो उनके डिअर डैडी को लगी
अब देखिए उनके डैडी जी
क्या हाल हमारा करते हैं
होठों से छुआकर मूंगफली
माशूक को मारा करते हैं।

था मूंगफली भेजे का ख़लल
हो गई घुसल खाने में ग़ज़ल।

(अब घुसल खाने में क्या ग़ज़ल हुई सुनिए)

के सामने लाल छड़ी हो तो ग़ज़ल होती है
ज़ुल्फ़ गालों पे पड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

फैस को मोड़ के कॉलेज की हसीना कोई
बच के लाइन में खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

तीस तारीख को पिक्चर के लिए जब मैडम
एकदम जिद पे अड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

जो दिलों का खटोला नहीं बिछने देते
खाट ऐसों की खड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

रात दिन ठाठ से होती रहे इनकम लेकिन
टैक्स भरने की घड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

अपने दूल्हे से कोई शोख़ नवेली दुल्हन
पुरे दस साल बड़ी हो तो ग़ज़ल होती है।

था मूंगफली भेजे का खलल
हो गई घुसल खाने में ग़ज़ल।
तो हम ताज़ा ग़ज़ल को साबुन के
  रेपर पे उतारा करते हैं।
होठों से छुआकर मूंगफली
माशूक को मारा करते हैं।

आफत हैं घुसल खाने कई घुटन
कब होगा न जाने उनसे मिलन।
लटके हैं लटके हैं लटके हैं
लट लट लट लट......
लटके हैं पड़ोसन के कपड़े
हम उनको निहारा करते हैं
होठों से छुआकर मूंगफली
माशूक को मारा करते हैं।