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"माँ / दिविक रमेश" के अवतरणों में अंतर

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रोज़ सुबह, मुंह-अँधेरे
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रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे
  
दूध बिलौने से पहले
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माँ  
 
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आराम से
 
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माँ
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जिसे मैंने कभी
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नहीं देखा  
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जवान होने पर
 
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एक प्रश्न घुमड़ आया है -
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00:40, 29 अप्रैल 2008 का अवतरण


रोज़ सुबह, मुँह-अंधेरे

दूध बिलोने से पहले

माँ

चक्की पीसती,

और मैं

घूमेड़े में

आराम से

सोता।


तारीफ़ों में बंधीं
माँ
जिसे मैंने कभी
सोते
नहीं देखा


आज

जवान होने पर

एक प्रश्न घुमड़ आया है--


पिसती
चक्की थी
या माँ?