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"बंदर का नाच / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

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मैं मदारी हूँ बंदर भी एक साथ
 
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थोड़ा और पास आ के देखो
 
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तमाशे की डुगडुगी गलियों में मंडराती,
 
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करता हूँ मैं प्रतीक्षा
 
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दरवाजों के बंद होने की
 
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हवा के थमने की, किसी के बोल पड़ने की
 
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उछलते कूदते अपनी रस्सी को पकड़े
 
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टोपी को उछालते
 
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अंधेरी सुरंग में नींद लंबी
 
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कि रात का सफर कुछ नहीं बस
 
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ठोस खंबों से टकराता समय
 
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मनुष्यों का मरना बंद हो गया जैसे एकाएक
 
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धरती अपने धुरी पर ठहरी सी और मैं
 
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कानों पे हाथ लगाए चकित
 
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अपनी अमरता पर
 
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और यह दर्पण तो नश्वरता है,
 
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अरे यह तो मैं
 
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गोल गोल घूमता
 
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बंदर और मदारी भी  
 
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08:07, 29 अप्रैल 2008 के समय का अवतरण

मैं मदारी हूँ बंदर भी एक साथ

सच एक ही मुखौटे में दो चेहरे हैं

छायाओं को मिटा दो

थोड़ा और पास आ के देखो

दोपहर के निर्जन अंतराल में

तमाशे की डुगडुगी गलियों में मंडराती,

करता हूँ मैं प्रतीक्षा

खिड़कियों के खुलने की

दरवाजों के बंद होने की

हवा के थमने की, किसी के बोल पड़ने की

उछलते कूदते अपनी रस्सी को पकड़े

टोपी को उछालते


अंधेरी सुरंग में नींद लंबी

कि रात का सफर कुछ नहीं बस

ठोस खंबों से टकराता समय


मनुष्यों का मरना बंद हो गया जैसे एकाएक

धरती अपने धुरी पर ठहरी सी और मैं

कानों पे हाथ लगाए चकित

अपनी अमरता पर

और यह दर्पण तो नश्वरता है,

अरे यह तो मैं

गोल गोल घूमता

बंदर और मदारी भी



1.6.2000