भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"चींटी / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मोहन राणा |संग्रह= }} मुझे नहीं मालूम<br> नहीं मालूम कि तु...) |
|||
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
सच के सवाल पर<br> | सच के सवाल पर<br> | ||
और वे पूछते रहे फिर भी<br> | और वे पूछते रहे फिर भी<br> | ||
− | + | उन्हें सच पर शक था<br> | |
+ | वह अजनबी था उनके संसार में<br><br> | ||
पंक्ति 34: | पंक्ति 35: | ||
और कुछ मैंने छुपा लिए पलकों में<br> | और कुछ मैंने छुपा लिए पलकों में<br> | ||
बुरे मौसम की आशंका में,<br> | बुरे मौसम की आशंका में,<br> | ||
− | किसी दरार को सींते हुए | + | किसी दरार को सींते हुए<br><br> |
− | + | 27.4.03 |
22:09, 10 मई 2008 का अवतरण
मुझे नहीं मालूम
नहीं मालूम कि तुम जानना क्या चाहते हो !
यही बचाव
सफाई मैं देता रहा
सच के सवाल पर
और वे पूछते रहे फिर भी
उन्हें सच पर शक था
वह अजनबी था उनके संसार में
मैं तो बस एक चींटी हूँ
ले जाता अपने वजन से कई गुना झूठ
यहाँ से वहाँ
उसे सच समझ कर
मुझे करना है
मुझे कुछ जानना है
बनानी है पहचान आइने में
सोच सोच
अपने को उपयोगी रखता रहा
ताकि वे मुझे भूलें ना
मैं बुरा बनता गया
डूबता हुआ सूरज छोड़ गया
सुनहरे कण पत्तों पर,
पेड़ उन्हें धरती में ले गया अपनी जड़ों में
और कुछ मैंने छुपा लिए पलकों में
बुरे मौसम की आशंका में,
किसी दरार को सींते हुए
27.4.03