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"चींटी / मोहन राणा" के अवतरणों में अंतर

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मैं तो बस एक चींटी हूँ<br>
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और मैं<br>
ले जाता अपने वजन से कई गुना झूठ<br>
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ले जाता अपने वज़न से कई गुना झूठ<br>
 
यहाँ से वहाँ<br>
 
यहाँ से वहाँ<br>
 
उसे सच समझ कर<br><br>
 
उसे सच समझ कर<br><br>
 
मुझे करना है<br>
 
मुझे कुछ जानना है<br>
 
बनानी है पहचान आइने में<br>
 
सोच सोच<br>
 
अपने को उपयोगी रखता रहा<br>
 
ताकि वे मुझे भूलें ना<br>
 
मैं बुरा बनता गया<br><br>
 
  
  

22:11, 10 मई 2008 का अवतरण


मुझे नहीं मालूम
नहीं मालूम कि तुम जानना क्या चाहते हो !
यही बचाव
सफाई मैं देता रहा
सच के सवाल पर
और वे पूछते रहे फिर भी
उन्हें सच पर शक था
वह अजनबी था उनके संसार में


और मैं
ले जाता अपने वज़न से कई गुना झूठ
यहाँ से वहाँ
उसे सच समझ कर


डूबता हुआ सूरज छोड़ गया
सुनहरे कण पत्तों पर,
पेड़ उन्हें धरती में ले गया अपनी जड़ों में
और कुछ मैंने छुपा लिए पलकों में
बुरे मौसम की आशंका में,
किसी दरार को सींते हुए

27.4.03