"कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 21" के अवतरणों में अंतर
(' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी }} {{KKCatKavita}} Category:लम्ब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
[[Category:लम्बी रचना]] | [[Category:लम्बी रचना]] | ||
{{KKPageNavigation | {{KKPageNavigation | ||
− | |पीछे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ | + | |पीछे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 19 |
− | |आगे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ | + | |आगे=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी / पृष्ठ 21 |
|सारणी=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी | |सारणी=कृष्ण सुदामा चरित्र / शिवदीन राम जोशी | ||
}} | }} | ||
<poem> | <poem> | ||
दासी से बोली जा जल्दी, | दासी से बोली जा जल्दी, | ||
− | पति खड़े हुए हैं बाहर में | | + | पति खड़े हुए हैं बाहर में | |
ले आवो स्वागत से उनको, | ले आवो स्वागत से उनको, | ||
− | स्वर्ण के सुन्दर इस घर में | | + | स्वर्ण के सुन्दर इस घर में | |
विप्र देव अन्दर आये, | विप्र देव अन्दर आये, | ||
− | ब्राह्मणी ने हर्ष मनाया है | | + | ब्राह्मणी ने हर्ष मनाया है | |
श्रीराम कृष्ण की जय बोलो, | श्रीराम कृष्ण की जय बोलो, | ||
− | उन ही की अद्भुत् माया है । | + | उन ही की अद्भुत् माया है । |
सब वैभव सम्पति देख विप्र, | सब वैभव सम्पति देख विप्र, | ||
− | जाना यह प्रभु प्रकाश हुआ । | + | जाना यह प्रभु प्रकाश हुआ । |
थे भक्त प्रभु के सच्चे वो, | थे भक्त प्रभु के सच्चे वो, | ||
− | धन से मन बहुत उदास हुआ । | + | धन से मन बहुत उदास हुआ । |
पति का मुख देखा कुम्हलाया, | पति का मुख देखा कुम्हलाया, | ||
− | कर जोरि कहा क्या कारण है | | + | कर जोरि कहा क्या कारण है | |
आनन्द मनाते क्यों न प्रभु, | आनन्द मनाते क्यों न प्रभु, | ||
− | आराम दिया नारायण है | | + | आराम दिया नारायण है | |
यह आनन्द स्वप्न बराबर है, | यह आनन्द स्वप्न बराबर है, | ||
− | जब आँख खुले आराम नहीं | | + | जब आँख खुले आराम नहीं | |
श्री राम-कृष्ण धन सच्चा है, | श्री राम-कृष्ण धन सच्चा है, | ||
− | इस धन से मुझको काम नहीं | | + | इस धन से मुझको काम नहीं | |
धन्य गरीबी धन्य-धन्य, | धन्य गरीबी धन्य-धन्य, | ||
− | पल भर न नाम विसराती है | | + | पल भर न नाम विसराती है | |
भक्ति है प्रभु की निश्छलता, | भक्ति है प्रभु की निश्छलता, | ||
− | वैकुण्ठ धाम पहुँचाती है | | + | वैकुण्ठ धाम पहुँचाती है | |
भक्ति से आनन्द हुआ, | भक्ति से आनन्द हुआ, | ||
− | श्रीकृष्ण चन्द्र की बलिहारी | | + | श्रीकृष्ण चन्द्र की बलिहारी | |
भक्त सुदामा ब्राह्मण थे, | भक्त सुदामा ब्राह्मण थे, | ||
− | पूर्ण भई आसा सारी | | + | पूर्ण भई आसा सारी | |
<poem> | <poem> |
00:56, 22 अक्टूबर 2016 का अवतरण
<< पिछला पृष्ठ | पृष्ठ सारणी | अगला पृष्ठ >> |
दासी से बोली जा जल्दी,
पति खड़े हुए हैं बाहर में |
ले आवो स्वागत से उनको,
स्वर्ण के सुन्दर इस घर में |
विप्र देव अन्दर आये,
ब्राह्मणी ने हर्ष मनाया है |
श्रीराम कृष्ण की जय बोलो,
उन ही की अद्भुत् माया है ।
सब वैभव सम्पति देख विप्र,
जाना यह प्रभु प्रकाश हुआ ।
थे भक्त प्रभु के सच्चे वो,
धन से मन बहुत उदास हुआ ।
पति का मुख देखा कुम्हलाया,
कर जोरि कहा क्या कारण है |
आनन्द मनाते क्यों न प्रभु,
आराम दिया नारायण है |
यह आनन्द स्वप्न बराबर है,
जब आँख खुले आराम नहीं |
श्री राम-कृष्ण धन सच्चा है,
इस धन से मुझको काम नहीं |
धन्य गरीबी धन्य-धन्य,
पल भर न नाम विसराती है |
भक्ति है प्रभु की निश्छलता,
वैकुण्ठ धाम पहुँचाती है |
भक्ति से आनन्द हुआ,
श्रीकृष्ण चन्द्र की बलिहारी |
भक्त सुदामा ब्राह्मण थे,
पूर्ण भई आसा सारी |