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| |रचनाकार=बुधराम यादव | | |रचनाकार=बुधराम यादव |
− | |संग्रह=गॉंव कहॉं सोरियावत हें / बुधराम यादव | + | |संग्रह=गॉंव कहॉं सोरियावत हें |
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| <poem> | | <poem> |
− | देखते देखत अब गांव गियाँ
| + | जुन्ना दइहनहीं म जब ले |
− | सब शहर कती ओरियावत हें!
| + | दारु भट्ठी होटल खुलगे |
− | कलपत कोयली बिलपत मैना
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− | मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें!
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− | ओ सुवा ददरिया करमा अउ
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− | फागुन के फाग नंदावत हे
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− | ओ चंदैनी ढोला-मारू
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− | भरथरी भजन बिसरांवत हे!
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− | डोकरी दाई के जनउला*
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− | कहनी किस्सा आनी बानी!
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− | ओ सुखवंतिन के चौरा अउ
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− | आल्हा रमायन पंडवानी!
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− | तरिया नदिया कुंवाँ बवली के
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− | पानी असन अटावत हें!
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− | सुकुवा* ऊवत नींद भर रतिहा
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− | अउ कुकरा बासत भिनसरहा
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− | अब पनिहारिन गगरी* मांजय
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− | न बहरी बाजय मुंधियरहा*!
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− | उठ नवा बहुरिया घर लीपय
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− | न गोबर हेरंय लछमैतीन !
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− | ढेंकी* मूसर के आरो तो
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− | बिन सूने गुजर गय क इयो दिन!
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− | अब खोर गली छर्रा-छिटका*
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− | न अंगना गोबर लिपावत हे!
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− | अमली-चटनी आमा-चानी
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− | भाटा-खोइला* सुक सा-भाजी*!
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− | बंडी पोलखा के लेन देन
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− | ओ हाट-बाट खउवा-खाजी!
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− | बर पीपर पिकरी* चार जाम
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− | बन बोइर तेंदू अउ औंरा!
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− | चर्रा गिल्ली डंडा फुगड़ी
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− | सब बिसरागंय बांटी भौंरा!
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− | अब नवा जिनिस मन ऊपरागंय
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− | जुन्ना* जमो तरियावत* हें!
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− | अब अधरतिहा दौंरी फांदय
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− | न पंगपंगात* नागर साजंय
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− | जतवा* कहुं बाजय घरर घरर
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− | न दही मथावय घमर घमर!
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− | पहुना परमेसर नइ मानय
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− | गीता रमायन नइ जानय!
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− | न किंजरय फेरी गली गली
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− | न सरेखंय अब हली भली !
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− | जुग भर के जोरे मया पिरीत
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− | के गठरी सब छरियावत हे!
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− | ओ खेतवरिया के रूखुवा म
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− | रेरा चिरइया के खोंधरा*!
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− | रूंधे बांधे बारी बखरी
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− | पाके सुार जोंधरी जोंधरा!
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− | ओ हरेली के गेंड़ी अउ
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− | पोरा के नंदी जंतुलिया!
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− | बिहाव के सिंघहा-झांपी* अउ
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− | नोनी के नानुक झंपुलिया*
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− | करसा करी के लाड़ू संग
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− | अब बतासा बिसरावत हें!
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− | ओ तरिया तीर नदिया खंड़ म
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− | कुहक त फुदकत बइठे कोयली!
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− | ओ घाघर तितुर के तुर तुर
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− | अउ मैना के अइंठे बोली!
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− | पड़की के घुटरब* घुटुर घुटुर
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− | अउ कठखोलवा के खटर खटर!
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− | खंचवा* कस आँखी खुसरा के
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− | घुवा के बड़का बटर बटर!
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− | ओसरी पारी सब गाँव छोड़
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− | डोंगरी पहरी बर जावत हें!
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− | भूखन घर बाबू के छट्ठी
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− | दुखिया घर के ओ अतमैती* !
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− | बर पीपर अउ लीम छइहाँ तरि
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− | गुड़ी म बइठे पंचयती!
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− | उन पंच कहाँ परमेसर कस
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− | अब तो बछवा कस अदरा* हें।
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− | कहे बर छांटे-निमेरे
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− | पन सिरतो बदरा-बदरा हें!
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− | लरहा मरहा तक पद पाके
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− | रतिहा भर म हरियावत हें!
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− | अब मरघटिया अउ गौचर का
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− | धरसा* म धांन बोवावत हे!
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− | गउठान बिना कोठा भीतर
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− | गरूवा बछरू बोमियावत* हें!
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− | जेती देखव बेजा कब्जाह
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− | रस्ता अउ डगर छेंकाये हें।
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− | सब पाप पोटारे बइठे हें
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− | पुन कौंड़ी असन फेंकाये हें!
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− | लोटा धर बाहिर जाये बर
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− | माई मन बड़ सकुचावत हें!
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− | जुन्ना दइहनही म जब ले | + | |
− | दारूभट्ठी होटल खुलगे!
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| टूरा टनका मन बहकत हें | | टूरा टनका मन बहकत हें |
− | सब चाल चरित्तलर ल भुलगें! | + | सब चाल चरित्तर ल भूलगें |
| मुख दरवाजा म लिखाये | | मुख दरवाजा म लिखाये |
− | हावय पंचयती राज जिहाँ। | + | हावय पंचयती राज जिहाँ |
− | चतवारे* खातिर चतुरा मन | + | चतवारे खातिर चतुरा मन |
− | नइ आवत हावंय बाज उहाँ!
| + | नई आवत हांवय बाज उहाँ |
| गुरतुर भाखा सपना हो गय | | गुरतुर भाखा सपना हो गय |
− | सब कॉंव कॉंव नरियावत हें! | + | सब काँव -काँव नारियावत हें |
− | | + | देखते देखत अब गाँव गियाँ |
− | *हिन्दी अरथ – जनउला : पहेली बुझाना, सुकुवा : शुक्रतारा, गघरी : पानी का घड़ा, मुंधरिहा : भोर का समय, ढेंकी : पैर से अनाज कूटने हेतु लकड़ी का उपकरण, छर्रा-छिटका : छिड़कना, भांटा-खोइला : धूप में सुखाए गए कटे हुए भटे के टुकड़े, सुकसा-भाजी : धूप में सुखाई गई चना,तिवरा,गोभी आदि की भाजी, पिकरी : पीपल का फल, जुन्नार : पुराना, तरियावत : नीचे होना, पंगपगांत : सूर्योदय पूर्व, जतवा : कोदो दलने हेतु मिट्टी की बड़ी चकिया, खोंधरा : घोंसला, झांपी : शादी में कन्या पक्ष की ओर से वर पक्ष को सगुन के सामान भरकर दिये जाने वाला बाँस से निर्मित ढक्कन सहित बड़ा टोकना, झपुलिया : ढक्क्न वाली बाँस की विशिष्ट टोकरी, घुटरब : आवाज निकालना, खंचवा : गड्ढा, अतमैती : मृत्यु:भोज, अदरा : नवसिखिया, धरसा : गाँव में निस्तार हेतु बैल गाडिय़ों एवं जानवरों के आने-जाने के लिए छोड़ा गया चौड़ा रास्ता, बोमियावत : अधीरता से आवाज निकालना, चतवारे : साफ करना।
| + | सब सहर कती ओरियावत हें ! |
| + | कलपत कोयली बिलपत मैना |
| + | मोर गाँव कहाँ सोरियावत हें ! |
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