भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"काबर समाये रे मोर बैरी नैना मा / लक्ष्मण मस्तुरिया" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा | काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा | ||
− | |||
आथे घटा करिया घनघोर | आथे घटा करिया घनघोर |
22:50, 28 अक्टूबर 2016 के समय का अवतरण
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा
झूलत रहिथे तोरे चेहरा
ए हिरदे के अएना मा
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा
अपने अपन मोला हांसी आथे
सुरता मा तोर रोवासी आथे
का जादू डारे टोनहा तैं
ए पिंजरा के मैंना मा
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा
आथे घटा करिया घनघोर
झूमर जाथे मंजूर मन मोर
पुरवईया असन आजे संगी
पानी हो के रैना मा
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा
का होगे मोला तोर गीत गा के
नाचे के मन होथे
काम बुता मा मन नइ लागे
धकर धकर तन होथे
आके कुछु कहिते संगवारी
मया के बोली बैना मा
काबर समाये रे मोर, बैरी नैना मा