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"वृक्ष खोजते अभय शरण / हरि ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

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सूरज उगल रहा है आग
और हवा मैं फैले नाग।

हरियाली का चीर हरण
वृक्ष खोजते अभय शरण
तड़क रहे पर्वत के अंग
पनघट ने ले लिया विराग।

जंगल सारा दहक रहा
दिन बुखार में बहक रहा
पथ सन्नाटा ओढ़ पड़ा
सुलग रहा सपनों का बाग।

अंजुरि भर हैं नदियाँ शेष
धरती धरे अगिन का वेश
पाखंडी हर बादल आज
फूल अलापते दीपक राग।