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11:28, 23 नवम्बर 2016 के समय का अवतरण
मेज़ पर
प्रतीक्षा ही प्रतीक्षा
अन्तहीन
लैम्प की महीन रोशनी में
रात
खिड़की को बना देती विशाल
कोई नहीं यहाँ
एक गुमनाम उपस्थिति ने
घेरा
चारों ओर से मुझे
अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’