भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अनल में प्रीत की जलने दिया कब / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
SATISH SHUKLA (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:27, 17 दिसम्बर 2016 के समय का अवतरण
अनल में प्रीत की जलने दिया कब
दहकती आग को बुझने दिया कब
न जाने कौन कब होगा पराया
समय ने एक सा रहने दिया कब
हताहत कर दिया इक तीर ही से
अराजकता गिरी, उड़ने दिया कब
बहुत दिन से, बहुत कुछ चल रहा था
बहुत दिन आपने, चलने दिया कब
पुजारी था हमेशा अम्न का जो
उसे भी चैन से मरने दिया कब
कली कुचली गयी है फिर चमन में
दरिंदे ने उसे खिलने दिया कब
अता होगा ज़रूरत के मुताबिक
'रक़ीब' उसने कभी कहने दिया कब