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+ | इस दाँव पर नहीं | ||
+ | देवदार -चन्दन से | ||
+ | अपना क्या नाता | ||
+ | गाँव -गली के लोग हमें प्यारा बबूल | ||
+ | सुबह बना | ||
+ | मुख की शेाभा | ||
+ | शाम पाँव में चुभा | ||
+ | स्वप्न में सबक बन गया | ||
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+ | धन के लोभी | ||
+ | भूखे-झूठे-आराम | ||
+ | हराम-सँभाले- भुक्तेंगे | ||
+ | हम तो पल्लू झाड़ गये | ||
+ | ऐसा खॅूटा गाड़ गये | ||
+ | जिसका चक्कर काटैं | ||
+ | बड़ी-बड़ी सींगो वाले | ||
+ | क्या समझें सन्तोष मायने | ||
+ | निश्छल-अन्तःकरण सृजित | ||
+ | युगों- युगों का संस्कार जो | ||
+ | मौके पर औजार भी | ||
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+ | फसलों के भीतर अवाँछित घासों को | ||
+ | उखाड़ फेंकना | ||
+ | जिसका दैनिक कारबार है | ||
+ | मगर , सामने जो जंगल है | ||
+ | हरा -भरा है | ||
+ | बहुत बड़ा है | ||
+ | उसे काटने का | ||
+ | कोई औचित्य नहीं | ||
+ | जब तक काली छाया | ||
+ | हरियाली के सिर के ऊपर | ||
+ | नहीं पड़ी हो | ||
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+ | वे अपना जीवन | ||
+ | और जियें | ||
+ | बड़ी बात है | ||
+ | किसी और की | ||
+ | लेकर आयु | ||
+ | कभी नहीं | ||
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14:27, 1 जनवरी 2017 का अवतरण
बड़े आदमी बड़े बनें
तो बन जायें
पर, छोटे बनें और छोटे
इस दाँव पर नहीं
देवदार -चन्दन से
अपना क्या नाता
गाँव -गली के लोग हमें प्यारा बबूल
सुबह बना
मुख की शेाभा
शाम पाँव में चुभा
स्वप्न में सबक बन गया
धन के लोभी
भूखे-झूठे-आराम
हराम-सँभाले- भुक्तेंगे
हम तो पल्लू झाड़ गये
ऐसा खॅूटा गाड़ गये
जिसका चक्कर काटैं
बड़ी-बड़ी सींगो वाले
क्या समझें सन्तोष मायने
निश्छल-अन्तःकरण सृजित
युगों- युगों का संस्कार जो
मौके पर औजार भी
फसलों के भीतर अवाँछित घासों को
उखाड़ फेंकना
जिसका दैनिक कारबार है
मगर , सामने जो जंगल है
हरा -भरा है
बहुत बड़ा है
उसे काटने का
कोई औचित्य नहीं
जब तक काली छाया
हरियाली के सिर के ऊपर
नहीं पड़ी हो
वे अपना जीवन
और जियें
बड़ी बात है
किसी और की
लेकर आयु
कभी नहीं