"अन्दर की बात है / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | उनको है मौन नमन | ||
+ | वो भी इसी महान | ||
+ | देश के सिपाही थे | ||
+ | कपड़े की लाखों मिलें | ||
+ | बुन न सकीं जिनके कफ़न | ||
+ | इसे कौन देखता है | ||
+ | अन्दर की बात है | ||
+ | लेकिन, जो भूखे वीर | ||
+ | जीवित हैं | ||
+ | खाली पेट नंगे हैं | ||
+ | तपेदिक से पीले हैं | ||
+ | बैकबोन टूटे हैं | ||
+ | फिर भी उम्मीदों के | ||
+ | साये में बैठे हैं | ||
+ | उनको परामर्श है | ||
+ | रोटियाँ नही तो क्या | ||
+ | अरबों के पार्क हैं | ||
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+ | बासन्ती हवा खायें | ||
+ | विदेशों की घासे हैं | ||
+ | फूल हैं - क्रोटन हैं | ||
+ | सुकुमार पेड़ों पर | ||
+ | चढ़े बेल - बूटे हैं | ||
+ | लखनऊ में बैठें तो | ||
+ | लन्दन का सुख पायें | ||
+ | शीतल हवा खायें | ||
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+ | जिये तो | ||
+ | अपना मूल्यवान वोट दें | ||
+ | मरें तो | ||
+ | आबादी को थोड़ा स्पेस दें | ||
+ | इसे कौन देखता है | ||
+ | अन्दर की बात है | ||
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+ | लेकिन, जो दिखता है | ||
+ | जो बाहर चलता है | ||
+ | वो अपना देश है | ||
+ | हरित प्रदेश है | ||
+ | बहिन जी का फेस है | ||
+ | गोल- गोल केश है | ||
+ | सोने की चिड़िया का | ||
+ | शोरबा पेश है | ||
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+ | देश के मामूली | ||
+ | दो तिहाई लोगो | ||
+ | चलो डूबे देश प्रेम में | ||
+ | दफ़तरों में नाचो | ||
+ | खेतों में नाचो | ||
+ | बड़े- बड़े गीत गाओ | ||
+ | बसों और ट्रैक्टरों में भर -भर के आाओ | ||
+ | और नारे लगाओ | ||
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15:55, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
ग़रीबी से लड़ते
ज़ाँबाज़ जो शहीद हुए
उनको है मौन नमन
वो भी इसी महान
देश के सिपाही थे
कपड़े की लाखों मिलें
बुन न सकीं जिनके कफ़न
इसे कौन देखता है
अन्दर की बात है
लेकिन, जो भूखे वीर
जीवित हैं
खाली पेट नंगे हैं
तपेदिक से पीले हैं
बैकबोन टूटे हैं
फिर भी उम्मीदों के
साये में बैठे हैं
उनको परामर्श है
रोटियाँ नही तो क्या
अरबों के पार्क हैं
बासन्ती हवा खायें
विदेशों की घासे हैं
फूल हैं - क्रोटन हैं
सुकुमार पेड़ों पर
चढ़े बेल - बूटे हैं
लखनऊ में बैठें तो
लन्दन का सुख पायें
शीतल हवा खायें
जिये तो
अपना मूल्यवान वोट दें
मरें तो
आबादी को थोड़ा स्पेस दें
इसे कौन देखता है
अन्दर की बात है
लेकिन, जो दिखता है
जो बाहर चलता है
वो अपना देश है
हरित प्रदेश है
बहिन जी का फेस है
गोल- गोल केश है
सोने की चिड़िया का
शोरबा पेश है
देश के मामूली
दो तिहाई लोगो
चलो डूबे देश प्रेम में
दफ़तरों में नाचो
खेतों में नाचो
बड़े- बड़े गीत गाओ
बसों और ट्रैक्टरों में भर -भर के आाओ
और नारे लगाओ