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"हवस / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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17:43, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
देने की आड़ में
चूसने की प्रवृत्ति
कोई रेशम के
कीड़े में देखे
काँटों से बचकर
निकल आये पाँव
महान हो गये
पर जूतों के नीचे
कितनी हरी घास
कुचल गयी और
कितने मोथों के नवांकुर
पिस गये
हवस बड़ी होती है
पहाड़ से ऊपर
उठने की
भले ही वह
आदमी के बूते से
चार हाथ आगे हो
जहाँ से उसे
अपनी ज़मीन न दिखे
और ज़मीन पर
खड़े आदमी को वह