"यह भी एक रास्ता है (कविता) / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जब तक पूरी भड़ास | ||
+ | न निकाल ले | ||
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+ | वह ख़ामियाज़ा भेागता है | ||
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+ | बचपन में | ||
+ | एक नसीहत मिली थी | ||
+ | उतावलेपन में | ||
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+ | कहीं से वाज़िब नहीं | ||
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+ | सामने ताक़तवर फौज हो | ||
+ | तो कोई अकेला | ||
+ | और निहत्था | ||
+ | क्या लड़ेगा | ||
+ | भले ही वह | ||
+ | इन्साफ़ की लड़ाई हो | ||
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+ | समय देखकर | ||
+ | चुप हो जाना | ||
+ | पराजय का संकेत नहीं | ||
+ | इन्तज़ार भी क्रान्ति का | ||
+ | हिस्सा है | ||
+ | यह भी एक रास्ता है | ||
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+ | आदमी के भीतर का | ||
+ | कुरुक्षेत्र जब | ||
+ | जंग के लिए | ||
+ | ललकारता है तो | ||
+ | कोई और | ||
+ | हथियार | ||
+ | नहीं तलाशता | ||
+ | ठीक वैसे | ||
+ | जैसे शब्द | ||
+ | देखने में | ||
+ | गोला-बारूद नहीं होता | ||
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22:23, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
कभी-कभी सोचता हूँ
प्रतिवाद से क्या फ़ायदा
वो जो कह रहा है
उसे सुनना चाहिए
बात को आगे बढ़ाने का
यह भी एक रास्ता है
वैसे जिस आदमी के
मुँह में बवासीर हो
खुद को रोक नहीं पाता
जब तक पूरी भड़ास
न निकाल ले
जितना काँखता है
उतनी पिचकारी छूटती है
जितना पोंकता है
उतनी दूर छिट्टा जाता है
और इस सबका
वह ख़ामियाज़ा भेागता है
बचपन में
एक नसीहत मिली थी
उतावलेपन में
आग में
कूद पड़ना
कहीं से वाज़िब नहीं
सामने ताक़तवर फौज हो
तो कोई अकेला
और निहत्था
क्या लड़ेगा
भले ही वह
इन्साफ़ की लड़ाई हो
समय देखकर
चुप हो जाना
पराजय का संकेत नहीं
इन्तज़ार भी क्रान्ति का
हिस्सा है
यह भी एक रास्ता है
आदमी के भीतर का
कुरुक्षेत्र जब
जंग के लिए
ललकारता है तो
कोई और
हथियार
नहीं तलाशता
ठीक वैसे
जैसे शब्द
देखने में
गोला-बारूद नहीं होता