"बड़ा बिगौना दिल्ली मा / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=डी. एम. मिश्र |संग्रह=यह भी एक रास्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | लखनऊ मा तौ छोट-छोट मुल बड़ा बिगौना दिल्ली मा | ||
+ | पूरे मुलुक के ऊपर होवे काम घिनैाना दिल्ली मा | ||
+ | गउँआ के हमरे सेकरेटरी झंखैं पावर थेारै बा | ||
+ | दुइ मूठी कै घूस-कमीशन जोगवैं कथरी-गुदरी मा | ||
+ | मुल दिल्ली वाले सेकरेटरी उनकै पंजा बहुत बड़ा | ||
+ | पूरे मुलुक कै खाल खींचि कै रक्खैं काली सदरी मा | ||
+ | घपला और धेाटाला वाला बड़ी बिछौना दिल्ली मा | ||
+ | |||
+ | यहर-वहर केव चितै कै केऊ माल तरै तर काट रहा | ||
+ | मुलुक-मुलुक मा घूमि-घूमि कै आपन यान उड़ाय रहा | ||
+ | मन्दिर-मस्जिद का उठाय कै हिन्दू-मुस्लिम बाँट रहा | ||
+ | भेाली जनता का पटाय कै आपन जाल बिछाय रहा | ||
+ | लखनऊ मा तौ ऐंचाताना, मूलमुलौना दिल्ली मा | ||
+ | |||
+ | मंत्री लोगै खाय रहें गोरू का चारा नाय बचा | ||
+ | अफ़सर सारे परमामिन्ट चापैं मुडियाये भर हीक | ||
+ | ग़ज़ब होइ गवा हज़म हवाला कोरट सबका किहिस बरी | ||
+ | बन्द एक ताबूत मा सब भी अब के दोखी, अब के नीक | ||
+ | भगत बना बा सैा-सैा चूहा खाय बिलौना दिल्ली मा | ||
+ | |||
+ | सर पै साफा बाँधि कै बन्दा आँखि मूँदि कै बइठल बा | ||
+ | केतना डाकू पहुँच गये संसद के रस्ते दिल्ली मा | ||
+ | लोकतंत्र के नाम पे देश मा लूटतंत्र कै राज चलै | ||
+ | चम्बल मा जौ रहत रहे अब ऊ बसते हैं दिल्ली मा | ||
+ | बहन-बेटियाँ नाय सुरक्षित बनीं खिलौना दिल्ली मा | ||
</poem> | </poem> |
22:35, 1 जनवरी 2017 का अवतरण
लखनऊ मा तौ छोट-छोट मुल बड़ा बिगौना दिल्ली मा
पूरे मुलुक के ऊपर होवे काम घिनैाना दिल्ली मा
गउँआ के हमरे सेकरेटरी झंखैं पावर थेारै बा
दुइ मूठी कै घूस-कमीशन जोगवैं कथरी-गुदरी मा
मुल दिल्ली वाले सेकरेटरी उनकै पंजा बहुत बड़ा
पूरे मुलुक कै खाल खींचि कै रक्खैं काली सदरी मा
घपला और धेाटाला वाला बड़ी बिछौना दिल्ली मा
यहर-वहर केव चितै कै केऊ माल तरै तर काट रहा
मुलुक-मुलुक मा घूमि-घूमि कै आपन यान उड़ाय रहा
मन्दिर-मस्जिद का उठाय कै हिन्दू-मुस्लिम बाँट रहा
भेाली जनता का पटाय कै आपन जाल बिछाय रहा
लखनऊ मा तौ ऐंचाताना, मूलमुलौना दिल्ली मा
मंत्री लोगै खाय रहें गोरू का चारा नाय बचा
अफ़सर सारे परमामिन्ट चापैं मुडियाये भर हीक
ग़ज़ब होइ गवा हज़म हवाला कोरट सबका किहिस बरी
बन्द एक ताबूत मा सब भी अब के दोखी, अब के नीक
भगत बना बा सैा-सैा चूहा खाय बिलौना दिल्ली मा
सर पै साफा बाँधि कै बन्दा आँखि मूँदि कै बइठल बा
केतना डाकू पहुँच गये संसद के रस्ते दिल्ली मा
लोकतंत्र के नाम पे देश मा लूटतंत्र कै राज चलै
चम्बल मा जौ रहत रहे अब ऊ बसते हैं दिल्ली मा
बहन-बेटियाँ नाय सुरक्षित बनीं खिलौना दिल्ली मा