"माँ - 1 / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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पूरी दुनिया | पूरी दुनिया | ||
सिर्फ तुम थीं | सिर्फ तुम थीं | ||
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+ | एक नन्हीं सीप में | ||
+ | जब दीप जैसा | ||
+ | एक मोती जगमगाता है | ||
+ | पत्तियों के बीच | ||
+ | झुरमुट से निकलकर | ||
+ | पुष्प जब मासूम | ||
+ | कोई मुस्कराता है | ||
+ | स्मृतियों के गर्भ में | ||
+ | तब क्षितिज के उस पार | ||
+ | जाकर डूब जाता है | ||
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+ | वो विधाता की | ||
+ | अलौकिक कार्यशाला | ||
+ | बिना गुरु की पाठशाला | ||
+ | एक अंकंुर जो | ||
+ | बहुत कोमल | ||
+ | हवा से भी | ||
+ | मुलायम था | ||
+ | बढ़ना जहाँ सीखा | ||
+ | उठना - खड़ा होना | ||
+ | सँभलना भी | ||
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+ | आज इस निष्कर्ष पर हूँ | ||
+ | देवता भी माँ तुम्हारे सामने बौने | ||
+ | सूर्य से कोई | ||
+ | चिराग़ जला नहीं | ||
+ | स्नेह पाकर | ||
+ | जल उठे सारे दिये | ||
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+ | सृष्टि में है | ||
+ | विविध रचनाएँ मगर | ||
+ | मामता की डोर केवल एक है | ||
+ | एक नाभिक के सहारे | ||
+ | सब निरन्तर घूमते | ||
+ | दूर तक बढ़ते | ||
+ | मगर स्वीकारते | ||
+ | पृथ्वी सबसे बड़ी | ||
+ | माँ मगर उससे बड़ी | ||
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22:48, 1 जनवरी 2017 का अवतरण
इस शीर्ष पर कोई नहीं
माँ जहाँ तुम हो
वहाँ कोई नहीं
तब न था आकाश
और न ज़मीन थी
अस्तित्व भी कोई न था
सिर्फ तुम थीं
पूरी दुनिया
सिर्फ तुम थीं
एक नन्हीं सीप में
जब दीप जैसा
एक मोती जगमगाता है
पत्तियों के बीच
झुरमुट से निकलकर
पुष्प जब मासूम
कोई मुस्कराता है
स्मृतियों के गर्भ में
तब क्षितिज के उस पार
जाकर डूब जाता है
वो विधाता की
अलौकिक कार्यशाला
बिना गुरु की पाठशाला
एक अंकंुर जो
बहुत कोमल
हवा से भी
मुलायम था
बढ़ना जहाँ सीखा
उठना - खड़ा होना
सँभलना भी
आज इस निष्कर्ष पर हूँ
देवता भी माँ तुम्हारे सामने बौने
सूर्य से कोई
चिराग़ जला नहीं
स्नेह पाकर
जल उठे सारे दिये
सृष्टि में है
विविध रचनाएँ मगर
मामता की डोर केवल एक है
एक नाभिक के सहारे
सब निरन्तर घूमते
दूर तक बढ़ते
मगर स्वीकारते
पृथ्वी सबसे बड़ी
माँ मगर उससे बड़ी