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"प्रकृति / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | जटिलताओं का आभास | ||
+ | फूल-पत्तियों को कम | ||
+ | जड़ों और बारीक तंतुओं को ज्यादा होता है | ||
+ | जहाँ भाषा और जुबान का | ||
+ | कोई काम नहीं होता | ||
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22:52, 1 जनवरी 2017 के समय का अवतरण
विधाता रहस्य रचता है
मनुष्य विस्मय में डूब जाता है
फिर जैसी जिसकी आस
वैसी उसकी तलाश
नतीज़े दिखाकर
प्रकृति मुमराह नहीं करती
प्रकृति जानती है
वह बड़ी है
पर, आस्था और
विश्वास पर खड़ी है
जहाँ एक पूजा घर होने से
बहुत कुछ बच जाता है खोने से
अनन्त का आभास
निकट से होता है
एक आइना अपनी धुरी पर
धूमता हुआ
बहुत दूर निकल जाता है
तब क्या-क्या
सामने आता है
जटिलताओं का आभास
फूल-पत्तियों को कम
जड़ों और बारीक तंतुओं को ज्यादा होता है
जहाँ भाषा और जुबान का
कोई काम नहीं होता