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"त्रिलोचन: धरती का हरसिंगार / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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भले त्रिलोचन कवियों का सिरमौर नहीं
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मगर त्रिलोचन  जैसा  कोई और नहीं
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संस्कार अंकुरित हुआ जब  मिट्टी में
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हरसिंगार खिल गया  चिरानेपट्टी  में।
  
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जहाँ गाँव की माटी से  कविता  फूटे
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परंपरा, परिपाटी  से  कविता  फूटे
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बात-बात में जिसकी कविता होती है
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मीठी भाषा  अद्भुत  भाव  पिरोती  है।
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पढ़ो त्रिलोचन को  तो ऐसा  लगता है
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कड़ी  धूप में  कोई  झरना  झरता  है
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कविता  का आस्वाद नया हो उठता है
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मंद-मंद जैसे  अलगोजा  बजता है।
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जो-जो लिखा त्रिलोचन ने वो याद करो
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आम  आदमी की अब पहले  बात  करो
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महल  छोड़कर  कविता कुटियों में पहँुची
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राजमार्ग  से चलकर  गलियों में  पहुँची।
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कविता ठाट नहीं  है  अब  सामन्तों का
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केवल  वो यशगान  नहीं  श्रीमन्तों का
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कविता  सीमाओं  के बन्धन  तोड़ चुकी
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घिसी-पिटी  वो लीक पुरानी छोड़ चुकी।
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खेतों की  हरियाली  में  अब  कविता हो
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मजदूरों  की  थाली में    अब कविता हो
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टूटी-फूटी  भाषा  भी अब  कविता हो
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छोटी-मोटी  आशा भी अब  कविता हो।
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नगई  महरा  मिल  जाये  तो  कविता हो
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भेारई  केवट  मुस्काये    तो कविता  हो
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गॉवों  की  चौपाल  लगे  तो कवि‍ता हो
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हरचरना    का हाल  मिले तो कविता हो।
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घनी  बदरिया  छाई  हो    तो कविता हो
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पुरवा  ठंडक    लाई  हो  तो  कविता हो
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शाम ढले  पंछी  लौटें    तो  कविता  हो
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मिल जुल कर सुख-दुख बाँटें तो कविता हो।
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जहाँ  ओज  है  वहाँ  त्रिलोचन  को देखो
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नया  जोश  है वहाँ त्रिलोचन    को देखेा
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जहाँ  शब्द  है  वहाँ त्रिलोचन  को देखो
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नया  छंद  है  वहाँ त्रिलोचन  को देखों।
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है प्रणाम  मेरा  उस  कवि  तेजस्वी  को
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सौ-सौ  धन्यवाद है अटल    तपस्वी  को
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कहाँ  महामानव  वो, कहाँ  अकिंचन  मैं
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श्रद्धा  के  दो  सुमन  कर रहा अर्पन  मैं।
 
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23:05, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

भले त्रिलोचन कवियों का सिरमौर नहीं
मगर त्रिलोचन जैसा कोई और नहीं
संस्कार अंकुरित हुआ जब मिट्टी में
हरसिंगार खिल गया चिरानेपट्टी में।

जहाँ गाँव की माटी से कविता फूटे
परंपरा, परिपाटी से कविता फूटे
बात-बात में जिसकी कविता होती है
मीठी भाषा अद्भुत भाव पिरोती है।

पढ़ो त्रिलोचन को तो ऐसा लगता है
कड़ी धूप में कोई झरना झरता है
कविता का आस्वाद नया हो उठता है
मंद-मंद जैसे अलगोजा बजता है।

जो-जो लिखा त्रिलोचन ने वो याद करो
आम आदमी की अब पहले बात करो
महल छोड़कर कविता कुटियों में पहँुची
राजमार्ग से चलकर गलियों में पहुँची।

कविता ठाट नहीं है अब सामन्तों का
केवल वो यशगान नहीं श्रीमन्तों का
कविता सीमाओं के बन्धन तोड़ चुकी
घिसी-पिटी वो लीक पुरानी छोड़ चुकी।

खेतों की हरियाली में अब कविता हो
मजदूरों की थाली में अब कविता हो
टूटी-फूटी भाषा भी अब कविता हो
छोटी-मोटी आशा भी अब कविता हो।

नगई महरा मिल जाये तो कविता हो
भेारई केवट मुस्काये तो कविता हो
गॉवों की चौपाल लगे तो कवि‍ता हो
हरचरना का हाल मिले तो कविता हो।

घनी बदरिया छाई हो तो कविता हो
पुरवा ठंडक लाई हो तो कविता हो
शाम ढले पंछी लौटें तो कविता हो
मिल जुल कर सुख-दुख बाँटें तो कविता हो।

जहाँ ओज है वहाँ त्रिलोचन को देखो
नया जोश है वहाँ त्रिलोचन को देखेा
जहाँ शब्द है वहाँ त्रिलोचन को देखो
नया छंद है वहाँ त्रिलोचन को देखों।

है प्रणाम मेरा उस कवि तेजस्वी को
सौ-सौ धन्यवाद है अटल तपस्वी को
कहाँ महामानव वो, कहाँ अकिंचन मैं
श्रद्धा के दो सुमन कर रहा अर्पन मैं।