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"खुली खरीदी / रामकिशोर दाहिया" के अवतरणों में अंतर

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20:22, 4 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

हरदी तेल का
उबटन करके
पीरी पहना रही खेत में
हवा लगे
उसकी भौजाई
राई, पियर-पियर पियराई

चढ़कर
देह जवानी महके
फीके लगते
बाग बगीचे
अगहन में
खुलने लग जाते
मन के सारे बंद गलीचे

नज़र बचाकर
पी जाने को
घर को ताके दूध, बिलाई
राई, पियर-पियर पियराई

धरने आई
आसों राई
जैसे बिटिया के
सिर छींदी
निकले
सगुन महाजन लाओ
आये कर
ले खुली खरीदी
  
नहीं! मानती
है नातिन के
पीले हाथ करेगी दाई
राई, पिपर-पियर पियराई

०००