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मदन शर विझेको उल्टिको चाह गर्छू
अमृत पर अफाली झैं म ता प्राण धर्छू ।
सकल बुझि नराखी सामु हुन्नौ पियारी
टपरि ख पर चालामा रहीछौ तयारी ।।१।।
अयि पतलि पियारी खाटमा जल्दि आऊ
खुप खिंचि कर बन्धन् घाँटिमा लौ लगाऊ ।
यति सुनि पतिको बात् बाति हेरी ह्रूँदी भै
हरि हरि हरिणाक्षी लाज् नदीमा डुबी गै ।।२।।
(*सूक्तिसिन्धु (फेरि), जगदम्बा प्रकाशन, २०२४)