"गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 9 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | लउठी उबा घुमैस गरीबा, उदुप घटिस घटना ए बीच- | |
+ | लउठी बिछल परिस सुद्धू ला, कंझा बइठिस आंख ला मूंद। | ||
+ | बाद चेत लहुटिस तब भड़कत -”टूरा, तुम मांई बइमान | ||
+ | बुजरुक मन के प्रेम ला टोरवा, तुम खेलत बन एक ठन प्राण। | ||
+ | मंय लइका के लड़ई मं पर के, ठगा गेंव-बन गेंव नदान | ||
+ | मित्र फकीरा ला बक डारेंव, करेंव कुजानिक तेकर लाज। | ||
+ | मित्र फकीरा ला बनाय अरि, आंख मिलाय शक्ति तक खत्म | ||
+ | जउन कुजानिक आज करे हंव, ओकर सजा मार मंय खाय।” | ||
+ | दसरु अउर गरीबा ला धर, लानिस तुरते ताही। | ||
+ | बच्चा मन नइ जाना चाहत पर नइ बोलत नाही। | ||
+ | बिसरु तिर मं सुद्धू केंघरिस -”का फोरंव मंय अपन बिखेद- | ||
+ | टुरा गरीबा खूब निघरघट, करथय पूर्ण अपन भर रेंद। | ||
+ | नेक सीख ला बिजरा देथय, वाजिब काम ले भागत दूर | ||
+ | एकर कारण मंय घसटाथंव, पुत्र के कारन मयं बदनाम।” | ||
+ | सुद्धू मर मर बिपत ला रोवत, ताकि सहानुभूति मिल जाय | ||
+ | पर बिसरु हा पक्ष लेत नइ, अउ ऊपर डारत हे दोष- | ||
+ | “बच्चा छल प्रंपच ले दुरिहा, झगरा कर-फिर बनत मितान | ||
+ | इनकर बीच परे तंय काबर, जबकिन तंय हुसनाक सियान।” | ||
+ | गोठ लमावत सोच के बिसरु, बात सुहावन फेंकिस जल्द- | ||
+ | “मितवा, व्यर्थ फिक्र झन कर तंय, तोर पुत्र के नेक सुभाव। | ||
+ | अच्छा, अब हमला जावन दे, गोटकारी मं कटगे आज | ||
+ | अपन बुता मं मंय पछुवावत, घर मं पहुंच पुरोहंव काम।” | ||
+ | सुद्धू कथय -”तिंहिच खरथरिहा, तोर बिगर अरझे सब काम | ||
+ | गांव करेला जाबे कल दिन, आज इहां भर कर विश्राम। | ||
+ | जान देंव नइ- रुकना परिहय, तोर गांव हम आबो दौड़ | ||
+ | अगर पेल तुम रद्दा नापत, हमर तोर मं लड़ई अवश्य।” | ||
+ | बिसरु खुलखुल हंस के कहिथय-”ले भई, हम बिलमत ए धाम | ||
+ | मगर आज का जिनिस खवाबे, फोर भला तो ओकर नाम?” | ||
+ | “हमर इहां चांउर पिसान हे, हवय तेल गुड़ शक्कर नून | ||
+ | मिट्ठी-नुनछुर सब बन सकही, जउन विचार पेट भर खाव। | ||
+ | सगा जेवाय जिनिस हे छकबक, चुनुन चुनुन हम चिला बनाब | ||
+ | मांईपीला बइठ एक संग, स्वाद लगा भर पेट उड़ाब।” | ||
+ | कहि सुद्धू हा तुरते घोरिस-एक सइकमा असन पिसान | ||
+ | आगी बार तवा रख चूल्हा, डारिस तेल घोराय पिसान। | ||
+ | सुद्धू हा चीला बनात हे, पर चीला हा बिगड़त खूब | ||
+ | ओहर तवा मं चिपके जावत, या फिर जावत पुटपुट टूट। | ||
+ | इही बीच मं अैस सुकलिया, ओहर हंसिस हाल ला देख | ||
+ | कहिथय -”तंय चीला बनात हस-गदकच्चा अधपके पिसान। | ||
+ | एला यदि लइका मन जेहंय, ओमन ला करिहय नुकसान | ||
+ | मोला तंय चीला बनान दे, मंय हा चुरो सकत हंव ठीक।” | ||
+ | सुद्धू कथय -”कहत हस ठंउका-जेवन रंधई कला ए जान | ||
+ | जमों व्यक्ति हा निपुण होय नइ, सर मं सती होत हे एक। | ||
+ | खपरा रोटी-गांकर सेंकत, चीला बनई कठिन हे काम | ||
+ | तंय हा चीला आज बना दे, सीख जहंव मंय ओला देख।” | ||
+ | चीला ला पलटात सुकलिया, सुद्धू बिसरु बात चलात | ||
+ | सुम्मत बंधत गरीबा दसरु – चील अस किंजरत चीला-पास। | ||
+ | कथय गरीबा -”हमन खेलबो-सगा परोसी उत्तम खेल | ||
+ | हमला तो बस चीला चहिये, ओकर बिन नइ आय अनंद।” | ||
+ | कथय सुकलिया -”धैर्य रखव कुछ, मंय चीला बनात हंव जल्द | ||
+ | एक साथ तुम सब झन बइठव, तंहने जेव लगा के स्वाद।” | ||
+ | भुलवारत हे खूब सुकलिया, तुलमुलहा मन नइ थिरथार | ||
+ | केंदरावत तब दंदर जात हे-बड़ खिसियात चिला-रखवार। | ||
+ | परे हवय चितखान सुकलिया, ओकर ध्यान तवा तन गीस | ||
+ | तिही मध्य दसरु चीला धर, पल्ला भागिस बिगर लगाम। | ||
+ | ओकर तोलगी धरिस गरीबा, तुर तुर तुर तुर अति उत्साह | ||
+ | पुछी चाब दउड़त हे जइसे-कातिक चल के अघ्घन माह। | ||
+ | ओमन दुसरा खंड़ मं पहुंचिन, कथय गरीबा -”तोर मं फूर्ति | ||
+ | मंय हा जोंगत रेहेंव बहुत क्षण, पर तंय चीला ला छिन लेस।” | ||
+ | दसरु कथय- “आज नइ खावन, कल बर लुका के चुप रख देत | ||
+ | जब एको झन तिर नइ रहिहंय, हम तुम दुनों झड़कबो बांट।” | ||
+ | ओमन चीला लुका दीन खब, तभे सुकलिया दीस अवाज- | ||
+ | “चीला चोर कहां हो तुम्मन, मोर पास झप दउड़त आव। | ||
+ | सब चीला मंय बना डरे हंव, तुम्मन पहुंच के जेवन लेव | ||
+ | करहू देर जिनिस ले वंचित, भूख मरत पछताहव खूब।” | ||
+ | लइका मन आपुस मं बोलिन- “काबर करन टेम ला नाश | ||
+ | अगर बेर- खा लिहीं हुड़म्मा, फिर चुचुवाना परिहय बाद” | ||
+ | सुम्मत बांध-बुंधी के आइन, दीस सुकिलया जेवन खाय | ||
+ | कहिथय- “मंय वापिस जावत हंव, तुम खा लेव बचत ला हेर। | ||
+ | बिसरु कथय- “तंहू भोजन कर, तंय चिला बनाय कर यत्न | ||
+ | जब तंय हा मिहनत बजाय हस, जिनिस खाय बर तक हक तोर।” | ||
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23:28, 6 जनवरी 2017 का अवतरण
लउठी उबा घुमैस गरीबा, उदुप घटिस घटना ए बीच-
लउठी बिछल परिस सुद्धू ला, कंझा बइठिस आंख ला मूंद।
बाद चेत लहुटिस तब भड़कत -”टूरा, तुम मांई बइमान
बुजरुक मन के प्रेम ला टोरवा, तुम खेलत बन एक ठन प्राण।
मंय लइका के लड़ई मं पर के, ठगा गेंव-बन गेंव नदान
मित्र फकीरा ला बक डारेंव, करेंव कुजानिक तेकर लाज।
मित्र फकीरा ला बनाय अरि, आंख मिलाय शक्ति तक खत्म
जउन कुजानिक आज करे हंव, ओकर सजा मार मंय खाय।”
दसरु अउर गरीबा ला धर, लानिस तुरते ताही।
बच्चा मन नइ जाना चाहत पर नइ बोलत नाही।
बिसरु तिर मं सुद्धू केंघरिस -”का फोरंव मंय अपन बिखेद-
टुरा गरीबा खूब निघरघट, करथय पूर्ण अपन भर रेंद।
नेक सीख ला बिजरा देथय, वाजिब काम ले भागत दूर
एकर कारण मंय घसटाथंव, पुत्र के कारन मयं बदनाम।”
सुद्धू मर मर बिपत ला रोवत, ताकि सहानुभूति मिल जाय
पर बिसरु हा पक्ष लेत नइ, अउ ऊपर डारत हे दोष-
“बच्चा छल प्रंपच ले दुरिहा, झगरा कर-फिर बनत मितान
इनकर बीच परे तंय काबर, जबकिन तंय हुसनाक सियान।”
गोठ लमावत सोच के बिसरु, बात सुहावन फेंकिस जल्द-
“मितवा, व्यर्थ फिक्र झन कर तंय, तोर पुत्र के नेक सुभाव।
अच्छा, अब हमला जावन दे, गोटकारी मं कटगे आज
अपन बुता मं मंय पछुवावत, घर मं पहुंच पुरोहंव काम।”
सुद्धू कथय -”तिंहिच खरथरिहा, तोर बिगर अरझे सब काम
गांव करेला जाबे कल दिन, आज इहां भर कर विश्राम।
जान देंव नइ- रुकना परिहय, तोर गांव हम आबो दौड़
अगर पेल तुम रद्दा नापत, हमर तोर मं लड़ई अवश्य।”
बिसरु खुलखुल हंस के कहिथय-”ले भई, हम बिलमत ए धाम
मगर आज का जिनिस खवाबे, फोर भला तो ओकर नाम?”
“हमर इहां चांउर पिसान हे, हवय तेल गुड़ शक्कर नून
मिट्ठी-नुनछुर सब बन सकही, जउन विचार पेट भर खाव।
सगा जेवाय जिनिस हे छकबक, चुनुन चुनुन हम चिला बनाब
मांईपीला बइठ एक संग, स्वाद लगा भर पेट उड़ाब।”
कहि सुद्धू हा तुरते घोरिस-एक सइकमा असन पिसान
आगी बार तवा रख चूल्हा, डारिस तेल घोराय पिसान।
सुद्धू हा चीला बनात हे, पर चीला हा बिगड़त खूब
ओहर तवा मं चिपके जावत, या फिर जावत पुटपुट टूट।
इही बीच मं अैस सुकलिया, ओहर हंसिस हाल ला देख
कहिथय -”तंय चीला बनात हस-गदकच्चा अधपके पिसान।
एला यदि लइका मन जेहंय, ओमन ला करिहय नुकसान
मोला तंय चीला बनान दे, मंय हा चुरो सकत हंव ठीक।”
सुद्धू कथय -”कहत हस ठंउका-जेवन रंधई कला ए जान
जमों व्यक्ति हा निपुण होय नइ, सर मं सती होत हे एक।
खपरा रोटी-गांकर सेंकत, चीला बनई कठिन हे काम
तंय हा चीला आज बना दे, सीख जहंव मंय ओला देख।”
चीला ला पलटात सुकलिया, सुद्धू बिसरु बात चलात
सुम्मत बंधत गरीबा दसरु – चील अस किंजरत चीला-पास।
कथय गरीबा -”हमन खेलबो-सगा परोसी उत्तम खेल
हमला तो बस चीला चहिये, ओकर बिन नइ आय अनंद।”
कथय सुकलिया -”धैर्य रखव कुछ, मंय चीला बनात हंव जल्द
एक साथ तुम सब झन बइठव, तंहने जेव लगा के स्वाद।”
भुलवारत हे खूब सुकलिया, तुलमुलहा मन नइ थिरथार
केंदरावत तब दंदर जात हे-बड़ खिसियात चिला-रखवार।
परे हवय चितखान सुकलिया, ओकर ध्यान तवा तन गीस
तिही मध्य दसरु चीला धर, पल्ला भागिस बिगर लगाम।
ओकर तोलगी धरिस गरीबा, तुर तुर तुर तुर अति उत्साह
पुछी चाब दउड़त हे जइसे-कातिक चल के अघ्घन माह।
ओमन दुसरा खंड़ मं पहुंचिन, कथय गरीबा -”तोर मं फूर्ति
मंय हा जोंगत रेहेंव बहुत क्षण, पर तंय चीला ला छिन लेस।”
दसरु कथय- “आज नइ खावन, कल बर लुका के चुप रख देत
जब एको झन तिर नइ रहिहंय, हम तुम दुनों झड़कबो बांट।”
ओमन चीला लुका दीन खब, तभे सुकलिया दीस अवाज-
“चीला चोर कहां हो तुम्मन, मोर पास झप दउड़त आव।
सब चीला मंय बना डरे हंव, तुम्मन पहुंच के जेवन लेव
करहू देर जिनिस ले वंचित, भूख मरत पछताहव खूब।”
लइका मन आपुस मं बोलिन- “काबर करन टेम ला नाश
अगर बेर- खा लिहीं हुड़म्मा, फिर चुचुवाना परिहय बाद”
सुम्मत बांध-बुंधी के आइन, दीस सुकिलया जेवन खाय
कहिथय- “मंय वापिस जावत हंव, तुम खा लेव बचत ला हेर।
बिसरु कथय- “तंहू भोजन कर, तंय चिला बनाय कर यत्न
जब तंय हा मिहनत बजाय हस, जिनिस खाय बर तक हक तोर।”