"गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 15 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | जेन छात्र हा पेन पाय-लहुटावय तुरते ताही। | |
+ | ओकर आदत सुधर जहय-पाहय सब ले वहवाही। | ||
+ | तुरुत गरीबा पेन निकालिस, सौंप दीस धनवा के हाथ | ||
+ | ओहर मिलतूगुरु ला बोलिस- “अब मंय हा बतात हंव सत्य। | ||
+ | मंय चोराय नइ पेन काकरो, तरी मं गिर के रिहिस रखाय | ||
+ | देखेंव तंहने लालच मं मर, पेन उठा के झप धर लेंव” | ||
+ | मिलतू अैस गरीबा के तिर, ठोंकिस पीठ करत तारीफ- | ||
+ | “तंय स्पष्ट बात बोले हस, ओकर ले मंय बहुत प्रसन्न। | ||
+ | मगर प्रश्न के उत्तर ला ढिल- पेन ला तंय काबर लहुटाय | ||
+ | नेक प्रेरणा कहां पाय हस, कते मनुख बांटिस सत सीख?” | ||
+ | कथय गरीबा- “पेन कीमती, मंय नइ लहुटातेंव तिनकाल | ||
+ | लुका के रखतेंव ठउर सुरक्षित, जातिस घर छुट्टी के बाद। | ||
+ | मगर मोर संग घटना घट गिस, शाला आय बढ़िस जब गोड़ | ||
+ | तभे ददा हा मोला छेंकिस, मुड़ ला सार राह ला दीस- | ||
+ | पर के गुमेे जिनिस यदि पाबे, लहुटा देबे ओकर चीज | ||
+ | ओकर बल्दा श्रम रउती कर, बिसा सकत बढ़िया अस चीज। | ||
+ | ददा के पाठ गांठ बांधेव मंय, अमर देव धनवा के चीज | ||
+ | मुड़ के भार लगत उतरे अस, धकधक ह्मदय घलो अब शांत” | ||
+ | मिलतू हा धनवा ला बोलिस- “विचलित रथय व्यक्ति के बुद्धि | ||
+ | धरे जिनिस ले ध्यान हटत तब, ओकर जिनिस कभुच गुम जात। | ||
+ | धनवा तंय हा सच ला फुरिया, शिक्षा काम पेन बिन बंद | ||
+ | ओकर याद भुलाये काबर, आखिर काबर गुम गिस पेन?” | ||
+ | धनवा बोलिस- “तंय ठंउका अस, बिल्कुल ठीक तोर अनुमान | ||
+ | शाला आय तियार होय तंह, ददा हा मोला रोकिस टोंक। | ||
+ | बोलिस- शाला मं कई लइका, उंकर साथ हंस-पढ़ लिख खेल | ||
+ | पर अस्मिता कुथा रख तंय हा, खुद ला राख उंकर के ऊंच। | ||
+ | उही बात किंजरत दिमाग मं, खुद ला पूछत मंय कई बार- | ||
+ | का वास्तव मं मंय हंव ऊंचा, अउ मनखे मन कीरा – निम्न? | ||
+ | इही विचार खोय मंय घोखत, पेन डहर ले हटगिस ध्यान | ||
+ | कतका बखत कोन तिर गिर गिस, मोला एकोकन नइ याद” | ||
+ | मिलतू हा सब छात्र ला बोलिस- “सम्मुख मं मिल गिस परिणाम | ||
+ | सही सीख के मिलिस उचित फल, गलत बुद्धि के करुहा नाम। | ||
+ | सोनू मण्डल गलत सीख दिस, तब धनवा हा टोंटा पैस | ||
+ | सुद्धू हा पथ नेक बताइस, तभे गरीबा इज्जत पैस। | ||
+ | दुख के गोठ तउन ला सुनलव, हम शाला मं बांटत ज्ञान | ||
+ | प्रेम सहिष्णुता अउ समानता, सेवा दया – विश्व बंधुत्व। | ||
+ | पर पालक मन घर मं देवत, कटुता भेद के गलती सीख | ||
+ | पालक के प्रभाव बालक पर, तब पालक के मानत बात। | ||
+ | लइका भगत लक्ष्य ले दुरिहा नष्ट होत हे भावी। | ||
+ | करथय काम समाज के अनहित पात घृणा – बदनामी। | ||
+ | मिलतू फेर छात्र ला बोलिस –”मोर तो अतका कहना साफ | ||
+ | कृषक ला मिलथय गोंटी – पथरा, अन्न के दाना अउ कई चीज। | ||
+ | ओहर फेंकत व्यर्थ जिनिस ला, बोवत खेत अन्न के बीज | ||
+ | ओकर ले अनाज हा उपजत, अन्न झड़क सब प्राण बचात। | ||
+ | उसनेच तुम्हर राह भर बिखरे, गुण – अवगुण अउ सत्य असत्य | ||
+ | तुम उत्तम सिद्धान्त ला चुन लव, सकुशल रहि पर हित ला जोंग” | ||
+ | शाला हा जब बंद हो जाथय, जमों छात्र मन बाहिर अैन | ||
+ | धनसहाय सुखी सनम गरीबा, खेल जमाय गीन मैदान। | ||
+ | उंकर हाथ मं गिल्ली डंडा, ओमन चूना तक धर लाय | ||
+ | तुरते घेरा गोल बना लिन, जोंड़ी बने करत हें घोख। | ||
+ | धनवा किहिस – सुझाव देत हंव, अब प्रारंभ खेल हा होय | ||
+ | सनम गरीबा गड़ी एक तन, मंय अउ सुखी दूसरा कोत।” | ||
+ | छेंकिस सनम “नहीं रे भैय्या, तुम्हर बात हा अस्वीकार | ||
+ | सनम गरीबा गड़ी बनन नइ, ओकर साथ भुगत मंय गेंव। | ||
+ | हम नांगर के खेल करेन तब, बइला बनेंव गरीबा साथ | ||
+ | खेल मं मजा अमरतेन लेकिन, चलिस गरीबा कपट के चाल। | ||
+ | गल्ती करिस दण्ड ला पातिस, पर मंय खाय इरता के मार | ||
+ | एकर ददा दीस कंस गारी, जमों डहर ले मंय बदनाम। | ||
+ | तब अब फेर भूल झन होवय, आज खेल मं मिलय अनंद | ||
+ | मोला तुम दूसर मितवा दव, रहंव गरीबा ले मंय दूर” | ||
+ | खूब खलखला हंसिस गरीबा –”जुन्ना लड़ई ला झन कर याद | ||
+ | बिते बात गनपत के होथय, वर्तमान पर राख निगाह। | ||
+ | मिलतू गुरु किहिस हे हमला, शांति अशांति मित्रता युद्ध | ||
+ | युद्ध-अशांति ला तज दो तुम हा, शांति मित्रता ला धर लेव। | ||
+ | तंहू बुद्धि मं सदभावना रख, गलत विचार ला बिल्कुल त्याग | ||
+ | “गिल्ली डंडा’ खेल हा उत्तम, खेल भावना रख के खेल।” | ||
+ | मात्र तीन चिट लिखिस गरीबा, सुखी गरीबा धनवा नाम | ||
+ | तंहा सनम ला कथय गरीबा- “मात्र तीन चिट मंय लिख देंव। | ||
+ | तंय हा हेर एक चिट झपकुन, चिट मं जेन व्यक्ति के नाम | ||
+ | उही खिलाड़ी तोर गड़ी सुन, बचत तेन मन दूसर पक्ष।” | ||
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23:33, 6 जनवरी 2017 का अवतरण
जेन छात्र हा पेन पाय-लहुटावय तुरते ताही।
ओकर आदत सुधर जहय-पाहय सब ले वहवाही।
तुरुत गरीबा पेन निकालिस, सौंप दीस धनवा के हाथ
ओहर मिलतूगुरु ला बोलिस- “अब मंय हा बतात हंव सत्य।
मंय चोराय नइ पेन काकरो, तरी मं गिर के रिहिस रखाय
देखेंव तंहने लालच मं मर, पेन उठा के झप धर लेंव”
मिलतू अैस गरीबा के तिर, ठोंकिस पीठ करत तारीफ-
“तंय स्पष्ट बात बोले हस, ओकर ले मंय बहुत प्रसन्न।
मगर प्रश्न के उत्तर ला ढिल- पेन ला तंय काबर लहुटाय
नेक प्रेरणा कहां पाय हस, कते मनुख बांटिस सत सीख?”
कथय गरीबा- “पेन कीमती, मंय नइ लहुटातेंव तिनकाल
लुका के रखतेंव ठउर सुरक्षित, जातिस घर छुट्टी के बाद।
मगर मोर संग घटना घट गिस, शाला आय बढ़िस जब गोड़
तभे ददा हा मोला छेंकिस, मुड़ ला सार राह ला दीस-
पर के गुमेे जिनिस यदि पाबे, लहुटा देबे ओकर चीज
ओकर बल्दा श्रम रउती कर, बिसा सकत बढ़िया अस चीज।
ददा के पाठ गांठ बांधेव मंय, अमर देव धनवा के चीज
मुड़ के भार लगत उतरे अस, धकधक ह्मदय घलो अब शांत”
मिलतू हा धनवा ला बोलिस- “विचलित रथय व्यक्ति के बुद्धि
धरे जिनिस ले ध्यान हटत तब, ओकर जिनिस कभुच गुम जात।
धनवा तंय हा सच ला फुरिया, शिक्षा काम पेन बिन बंद
ओकर याद भुलाये काबर, आखिर काबर गुम गिस पेन?”
धनवा बोलिस- “तंय ठंउका अस, बिल्कुल ठीक तोर अनुमान
शाला आय तियार होय तंह, ददा हा मोला रोकिस टोंक।
बोलिस- शाला मं कई लइका, उंकर साथ हंस-पढ़ लिख खेल
पर अस्मिता कुथा रख तंय हा, खुद ला राख उंकर के ऊंच।
उही बात किंजरत दिमाग मं, खुद ला पूछत मंय कई बार-
का वास्तव मं मंय हंव ऊंचा, अउ मनखे मन कीरा – निम्न?
इही विचार खोय मंय घोखत, पेन डहर ले हटगिस ध्यान
कतका बखत कोन तिर गिर गिस, मोला एकोकन नइ याद”
मिलतू हा सब छात्र ला बोलिस- “सम्मुख मं मिल गिस परिणाम
सही सीख के मिलिस उचित फल, गलत बुद्धि के करुहा नाम।
सोनू मण्डल गलत सीख दिस, तब धनवा हा टोंटा पैस
सुद्धू हा पथ नेक बताइस, तभे गरीबा इज्जत पैस।
दुख के गोठ तउन ला सुनलव, हम शाला मं बांटत ज्ञान
प्रेम सहिष्णुता अउ समानता, सेवा दया – विश्व बंधुत्व।
पर पालक मन घर मं देवत, कटुता भेद के गलती सीख
पालक के प्रभाव बालक पर, तब पालक के मानत बात।
लइका भगत लक्ष्य ले दुरिहा नष्ट होत हे भावी।
करथय काम समाज के अनहित पात घृणा – बदनामी।
मिलतू फेर छात्र ला बोलिस –”मोर तो अतका कहना साफ
कृषक ला मिलथय गोंटी – पथरा, अन्न के दाना अउ कई चीज।
ओहर फेंकत व्यर्थ जिनिस ला, बोवत खेत अन्न के बीज
ओकर ले अनाज हा उपजत, अन्न झड़क सब प्राण बचात।
उसनेच तुम्हर राह भर बिखरे, गुण – अवगुण अउ सत्य असत्य
तुम उत्तम सिद्धान्त ला चुन लव, सकुशल रहि पर हित ला जोंग”
शाला हा जब बंद हो जाथय, जमों छात्र मन बाहिर अैन
धनसहाय सुखी सनम गरीबा, खेल जमाय गीन मैदान।
उंकर हाथ मं गिल्ली डंडा, ओमन चूना तक धर लाय
तुरते घेरा गोल बना लिन, जोंड़ी बने करत हें घोख।
धनवा किहिस – सुझाव देत हंव, अब प्रारंभ खेल हा होय
सनम गरीबा गड़ी एक तन, मंय अउ सुखी दूसरा कोत।”
छेंकिस सनम “नहीं रे भैय्या, तुम्हर बात हा अस्वीकार
सनम गरीबा गड़ी बनन नइ, ओकर साथ भुगत मंय गेंव।
हम नांगर के खेल करेन तब, बइला बनेंव गरीबा साथ
खेल मं मजा अमरतेन लेकिन, चलिस गरीबा कपट के चाल।
गल्ती करिस दण्ड ला पातिस, पर मंय खाय इरता के मार
एकर ददा दीस कंस गारी, जमों डहर ले मंय बदनाम।
तब अब फेर भूल झन होवय, आज खेल मं मिलय अनंद
मोला तुम दूसर मितवा दव, रहंव गरीबा ले मंय दूर”
खूब खलखला हंसिस गरीबा –”जुन्ना लड़ई ला झन कर याद
बिते बात गनपत के होथय, वर्तमान पर राख निगाह।
मिलतू गुरु किहिस हे हमला, शांति अशांति मित्रता युद्ध
युद्ध-अशांति ला तज दो तुम हा, शांति मित्रता ला धर लेव।
तंहू बुद्धि मं सदभावना रख, गलत विचार ला बिल्कुल त्याग
“गिल्ली डंडा’ खेल हा उत्तम, खेल भावना रख के खेल।”
मात्र तीन चिट लिखिस गरीबा, सुखी गरीबा धनवा नाम
तंहा सनम ला कथय गरीबा- “मात्र तीन चिट मंय लिख देंव।
तंय हा हेर एक चिट झपकुन, चिट मं जेन व्यक्ति के नाम
उही खिलाड़ी तोर गड़ी सुन, बचत तेन मन दूसर पक्ष।”