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"गरीबा / चरोटा पांत / पृष्ठ - 8 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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10:48, 7 जनवरी 2017 का अवतरण

खयटहा मन के तुम लइका अव, जानत तुम्हर ददा के हाल
ओमन सदा सबो संग झगरिन, फिर तुम कहां ले करहू प्रेम?
अब कभु मोर सनम संग लड़िहव, रोटी अस पो देहंव गाल
कनबुच्ची धर के केंदराहंव, भले होय तकरार-बवाल।”
सुन चिरबोर पहुंचगे सुद्धू, एक बड़े लउठी धर हाथ
तभे गरीबा पास मं अमरिस, लिखरी लिखत झूठ ला मेल-
“आय फकीरा गांव के बुजरुक, पंचायत मं निर्णय देत
मगर आज खुद गलत राह पर, ओहर करिस गजब अन्याय।
ओहर मोला थपरा मारिस, अंइठिस कान-पटक दिस दोंय
यदि मंय कुछ असत्य बोलत हंव, वास्तव गोठ सुखी ला पूछ।”
जहां गरीबा ढाढ़ा कूटिस, सुद्धू ला चढ़गे कंस जोश
टिंया के मितानी टोरत अउ, जोमिया लड़त फकीरा साथ-
“तंय बुढ़ुवा टूरा संग लड़थस, थोरको असन भला कर शर्म
तोर टुरा अंधेर लड़ंका, तभो संरोटा लेवत खूब!
मोर गरीबा ले अब लड़बे, या अटपट अस भाखा टांठ
पहटा टोर दुहूं मंय नसना, देव ला सोझियावत पिट सांट।”
सुद्धू हा जहां अतका बोलिस, चढ़िस फकीरा पर बिख-खार
मिरचा होय बड़े के छोटे, मगर खाय मं चढ़थय झार।
ओहिले कूद फकीरा बखलत-”मोर मरइया होथस कोन!
तोर गरीबा खयटहा बिक्कट, मोर मयारु सनम हा सोन।
दही जमे नइ मोर हाथ मं, तोर मार खाहंव चुपचाप
अगर अपन पत चहत बचाना, मुंह करिया कर-घर पग नाप।
लड़त फकीरा अउ सुद्धू मन, बायबिरिंग हो मुंह फरकात
टूरा मन तक ठाड़बाय नइ, लड़ई बढ़य कहि कुबल लुहात।
केड़ू दुनों पक्ष ला बोलिस – “करो समाप्त लड़ाई।
बच्चा झगड़ के फिर मिल जाथंय जइसे पाट के भाई।
जब ग्रामीण बीच मं अंड़ गिन, शांति रखे बर करिन बचाव
तभो दुनों झन क्रोध मं हंफरत, एक-दूसर ला देखत लाल।
अपन गरीबा ला हेचकारत, सुद्धू लेगत हे घर कोत
लहुट फकीरा सनम ला देखत, कहत गरीबा ला कंस डांट-
“मंय हा तोला सीख देत हंव, यदि खेले बर तोर विचार
तंय “ढारा’ चल खेल सकत हस, उहां के मनखे सरल उदार।
मगर फकीरा-सनम शत्रु अस, मन मं रखत कपट के दांत
उनकर छंइहा कभू खूंद झन, उंकर ले दुरिहा रहि प्रण ठान।”
सनम ला फकीरा चेचकारत -”बड़ उठमिलवा बेटा-बाप
उंकर साथ तंय अड्डी रहिबे, मढ़त हमर पर अटपट दोष।”
बनिन हेरौठा अउ घर लहुटिन, कुरबुरात मुंह करु बनात
सुद्धू घर आइस तब मिलगे, बिसरु अपन पुत्र के साथ।
बिसरु अपन पुत्र ला देखत, कहिथय -”एकर दसरु नाम
आय गरीबा-संग खेले बर, फूल बदे बर-बदे मितान।”
सुद्धू, दसरु के अंगरी धर, अंदर घर लेगिस तत्काल
बिसरु ला खटिया पर बइठा, अब सुनात मितरंउधी हाल-
“काय बतांव अपन लेड़गई ला, मोला लगत घलो बड़ लाज
मंय बिपताय बाल झगरा में, फोकट नाश होत दिन आज।”
बिसरु कथय- “तोर बाबू हा, अड़बड़ कंइया हवय मितान
चिभिक लगा-कहुं बने पढ़ाबे, बनिहय समझदार गुणवान।”
सुद्धू बिसरु गोठमं भूलेे, बालक मन के बिधड़क हाल
आपुस मं टक बांध के देखत, होवत ललक करे बर मेल।
अपन जंहुरिया जान गरीबा, तुरुत गीस दसरु के पास
ओकर “बुगई’ ला खन दिस चुट चुट, पर तन देखत खुल खुल हांस।
दसरु घलो कलबला गे तंह, खींचिस जोर गरीबा के बाल
बिन कारण झगरा जर बढ़गे, होवत दुनों मध्य चिरबोर।
इंकर तीर सुद्धू दउड़िस अउ, शांत करिस-कर बीच बचाव
लान खजानी दीस खाय बर, तंह लइका खावत बड़ चाव।
दसरु कहत गरीबा ला अब -”चल दिन कहां तोर सब मित्र
चलना उंकर साथ खेलिन्गे, कउनो जाय हार या जीत।”
“इहां मोर कतको संगवारी, जेमन नइ बोलंय नकसेट
सुखी सनम मन मोर मित्र प्रिय, चल अउ उंकर साथ कर भेंट।”
बोल गरीबा हा दसरु ला, संग लेगिस परिचय करवाय
सुखी सनम मिलगें आगुच मं, खेल करत “लउठी के खेल’
कथय गरीबा – “सुनव मोर तन, आय एक झन नवा मितान
उहू खेलना चहत तुम्हर संग, का विचार तुम उत्तर देव?”
“एकर बर तंय काबर पूछत- हमला कभू कहां इंकार
फोकट समय गंवावव झन तुम, पागी कंस झप होव तियार।”
सनम के कहना सुनिस गरीबा, लउठी लानिस तुरुत तपास
अब चारों साथी मिल खेलत, लेवत नइ एको कन सांस।
लउठी ला ऊपर उठात अउ, चिखला मं धंसात कर शक्ति
लउठी ला लउठी पर पीटत, अमर सफलता होत प्रसन्न।
सुद्धू लइका मन ला खोजत, पर नइ पावत-निकलत तेल
आखिर उंकर तीर जा देखिस-उंकर जमे हे “लउठी खेल’