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|सारणी=गरीबा / नूतन प्रसाद शर्मा
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सोनसाय मण्डल गरकट्टा, जे करिहय एकर विश्वाकसमोर असन कंस धोखा खाहय, अपन हाथ खुद सत्यानाश।”तिजऊ के अन्जरी गोठ ला सुनते, सोनसाय हा ललिया गीस-“वाह रे चोरहा, गलत करे खुद, दोष ला डारत हस मुड़ मोर।पर ला सदा भलाई बांटेव, नित बांटे हंव नेक सलाहखुद ला तंय भुखमर्रा कहते, तोला मिलतिस मदद अवश्य।मगर साफ नइ नीयत- बूता, सदा चले हस राह अनर्थउही पुराना ढचरा कारण, आज घलो करे हस अपराध”सोनसाय बैठक ला बोलिस- “भाई बहिनी, तुम सुन लेवतुम्मन सत्य तथ्य ले वाकिफ, तिजऊ आय बड़ घालुक चोर।जमों जुरुम ला खुद स्वीकारिस, अब तुम एकर निर्णय देवमोर सलाह हवय बस अतका, कड़ा दण्ड तुम एला देव।एकर भरभस टूट जाय खब, गलत राह रेंगय झन फेरपर मन घलो सीख ला पावंय, ओगन रेंगय अपन सुधार।मोर बोल कांटा अस चुभथय, मगर गांव के होत सुधारशल्य चिकित्सक तन ला काटत, पर ओहर बचात हे जान”घंसिया किहिस- “नेक बोले हस, तिजऊ चोर पर हे सब दोषओकर गल्ती क्षमा लइक नइ, निश्चय मिलय कड़ा अस दण्ड”घंसिया हा तंह तिजऊ ला बोलिस- “सोनू पर लांछन झन डारतोर दोष हा होय प्रमाणित, तब निर्णय ला चुप सुन लेव-लान पांच Ïक्वटल अनाज अउ, कड़कड़ रुपिया बीस हजारतोला समझ महा भुखमर्रा, तरस मरत तब कमती डांड।हम्मन निर्णय करे हवन अभि, यदि ओकर होवत हिनमानतंय हा उचुकबुड़ा मं परबे, लासा डबक बेचा जहि रांड़”सुन के तिजऊ सुकुड़दुम होवत, आज होय मुड़ बोज नियावओकर जीयत खटिया उसलत, बीच सिंधु मं बूड़त नाव।बपुरा तिजऊ मुड़ी गड़िया लिस, हेरत मुंह ले करुण अवाज-“दण्ड पटाय खात हंव लंगड़ी, मोर पास नइ रुपिया अन्न।मंय भुखमर्रा-कंगला मनसे, पसिया बिगर मरत पोट-पोटसोनू हा सब धन ला गटकिस, अब मंय पांव कहां ले नोट!”सुनते परस ततेरत आंखी –”वह रे चोर – उचक्का।स्वयं करे हस काम खोट अउ सोनू पर बदनामी।सोचत हस के आज धवाहंव, पूरा गांव ला मंय भर एकलेकिन जान हमर सम्मुख में, चल नइ सकय तोर प्रण-टेक”देख शिकारी हिरण हा कंपसत, पिंजरा अंदर सुवा धंधायतिजऊ फंसे बइठक के चंगुल, बात बंद जस मुवा धराय।सोनसाय हा भीड़ ला बोलिस- “सुनव गांव के मजुर किसानतिजऊ बहुत चलवन्ता मनखे, मारत ढचरा गला बचाय।जे मुजरिम हा चहत बोचकना, कलपत रोथय मुंहू ओथारप्रस्तुत करथय झूठ गवाही, अपन पक्ष ला करथय ठोस।न्यायालय दिग्भ्रमित होत हे , मिल जावत मुजरिम ला लाभजमों दोष ले मुक्ति मिलत तंह, अलग बइठ के हंसथय खूब।पांच पंच कुछ दूर जगा हट, सुम्मत बंध के करो विचार-चोरहा तिजऊ बोचक झन पावय, ओला मिलय सदा बर सीख”मुटकी हाथ बजा के बोलिस- “सोनसाय के नेक सलाहझड़ी-लतेल-परस अउ घंसिया, बनय फकीरा मन हा पंच।बइठक ले कुछ दूर जांय अउ, आपुस सुंट बंध – करय विचारतंह निष्पक्ष न्याय ला देवंय, आलोचना होय झन बाद”पांच पंच बइठक ले उठ गिन, ओमन निकल गीन कुछ दूरघेरा गोल बना के बइठिन, उहां करत हेंे मंथन खूब।किहिस लतेल “उमंझ नइ आवत, आखिर हम का करन नियावअगर तिजऊ के पक्ष लेत हन, कंगला कहां दे सकही लाभ!सोनसाय के पक्ष लेत हन, दिही धान – आर्थिक सहयोगयदि ओकर विरुद्ध हम जावत, निश्चय बाद लिही प्रतिशोध।हम्मन अपन भलई ला देखन, भले तिजऊ हा बिन्द्राबिनासपर सोनू ला लाभ देन हम, परलोखिया ला करन प्रसन्न”कथय फकीरा -”पंच बने हव, परमे•ार हा बोलत सत्यलेकिन तुम खुद गलत राह पर, अइसन मं होवत अन्याय।सोनू मण्डल करिस कुजानिक, तिजऊ के हड़पिस अनधनमालरखव सहानुभूति ओकर पर, ताकि भविष्य सुखद बन जाय”झड़ी हा थोरिक उग्र हो जाथय “तुम्मन मोर गोठसुन लेवअपराधी पर दया मरो झन, कभु झन लेव चोर के पक्ष।अगर तिजऊ पर दया करत हव, करिहय फिर जघन्य अपराधतेकर ले भरभस टोरे बर, कड़ा दण्ड तुम निश्चय देव”बइठक-पास पंच मन लहुटिन, तंह घंसिया हा हेरिस बोल-“तुम हम पर वि•ाास करे हव, तभे पंच-पद पर बइठाय।तब फिर हमर फर्ज हे अतका, ककरो पक्ष भूल झन लेननिर्णय सही-ठीेक हम देवन, न्याय के इज्जत ला रख लेन।तिजऊ ला पहिली डांड़ करे हन, पर ओहर हिनहर कंगालसोनू के घर काम करे खुद, पर नइ मिलय काम के दाम।
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