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"गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 2 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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तभे देंह मं फूर्ति लगत-मंय बइठ खांव नइ खाना।
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तभे अटकिहय काम-बुताही ए जीवन के बाती।
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“तंय बुजरुक रटाटोर कमावत, तब मंय हंव भरपूर जवान
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तोर प्रेरणा ले उत्साहित, महिनत ला करिहंव प्रण ठान”
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सुखी हा अपने रद्दा रेंगिस, सोनसाय निकलिस ए ओर
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फइले रिहिस बबूल के डाली, काँटा हा फइले सब ओर।
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ओकर गोड़ चभक गिस कांटा, सोनू दरद मं करथे हाय
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कांटा ला हेरे बर सोचिस, पर असफल चल दीस प्रयास।
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मण्डल हा सुद्धू पर बिफड़िस – “दरद बढ़ाय धरे हस राह
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कांटा ला बगराय सबो तन, ताकि मरय मनसे अनजान।
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यद्यपि तंय कांटा गड़ास नइ, तब तंय कहां ले पाबे दोष
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बिगर जीव के बपुरा कांटा, फोकट हो जाहय बदनाम।
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पर मंय हा दिग्भ्रमित होंव नइ, समझत खूब कपट के चाल
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पैर मं कांटा टूटिस रट ले, लहुट जहय गुखरु के घाव।
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मोर पांव हा पंगु हो जाहय, चले फिरे बर मंय असमर्थ
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मंय स्पष्ट जवाब मंगत हंव – का कारण दुश्मनी उठाय?”
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सुद्धू कथय -“भड़क झन मण्डल, तर्क वितर्क के वन झन घूम
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तोर मोर शत्रुता कहां कुछ, नइ पहुंचांव दर्द तकलीफ।
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तोर पांव मं कांटा गड़ गिस, ओहर तो बस धोखा आय
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मोर पास चिमटा पिन तेमां, कांटा ला झप देत निकाल।”
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सोनसाय के पांव ला राखिस, सुद्धू निज घुटना पर जल्द
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पैर मं कांटा घुसे जउन कर, पिन से कोड़ हलावत खूब।
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कांटा हिल के ऊपर आइस, चिमटा मं निकाल दिस खींच
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अपन हथेली कांटा ला रख, सोनू ला बन नम्र देखात।
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कहिथय- “कांटा बाहिर आ गिस, अपन फिकर ला तंहू निकाल
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व्यर्थ गोठशत्रुता बढ़ाथय, फइलत अमर बेल कस नार।”
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सोनसाय हा कहिथय रोषहा – यद्यपि कांटा हा निकलीस
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लेकिन ओकर दर्द शेष अभि, जेहर कभू मिटन नइ पाय।
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मंय अहसान तोर नइ मानों, निंदा लइक तोर सब चाल
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कुआं गिराके फेर निकालत, ओहर कहां आय उपकार!
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ओहर आय बड़े हत्यारा, प्राण हरे बर उदिम उचैस
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तइसे दुख पीरा बांटे हस, करिहय कोन तोर तारीफ?”
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सोनसाय हा उहां ले हटगे, आगू बढ़िस थोरकिन दूर
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परस आत टपटप ओकर बल, जउन हा हंफरत लेवत सांस।
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परस किहिस- “मंय तोला खोजत, तोर एक ठक मोतीखेत
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ओमां नांगर चलत रिहिस तब, उहें फकीरा खब ले अैस।
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ओहर रेंगत नांगर रोकिस -“एहर आय मोर प्रिय खेत
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सोनू के अधिकार इहां नइ, तुम्मन निकल जाव चुपचाप।”
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सोनू मानो सोय ले उठगे, कथय झकनका कर के रोष-
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“मोतीखेत आय मोरेच बस, कोन कथय दूसर के आय?
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अगर फकीरा हक बतात तब, चल तो देखंव ओकर टेस
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ओकर नसना टोर के रहिहंव, तभेच मोर चोला हा जूड़।
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मंय हा पटवारी तिर जावत उही दबाहय पाती।
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नाप जोख के उही बताहय – कोन करत गद्दारी।
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सोनू हा पटवारी तिर गिस, स्वार्थ सिधोय चलिस हे चाल-
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“शिक्षक अगर करत आमंत्रित, अस्वीकार तभो ले ठीक।
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अगर नर्स हा करत नमस्ते, उहू ला ठुकरा सकत बलात
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पर पटवारी मन हा चुम्बक, आत तुम्हर तिर बिगर बलाय।
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कृषक के भाग्य तुम्हर तिर होथय, नक्शा कंघी लौह जरीब
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जिलाधीष अव गांव के तुम्मन, सुनना परत जमों आदेश।”
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पटवारी हां हंस के बोलिस- “मोर प्रशंसा झन कर व्यर्थ
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मंय अकास मं उड़त गरब कर, अगर काम तब कहि दे साफ।?”
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सोनू कथय -“तंहू जानत हस-हवय एक ठक मोतीखेत
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ओमां अन्न उपजथय गसगस, नाम धरे तब मोतीखेत।
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गीन भृत्य मन धान बोय बर, ओमन उहां करत हें जोंत
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तभे फकीरा उंहचे पहुंचिस, काम के बीच पार दिस आड़”
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पटवारी दबके अस बोलिस -“मंहू करत हंव शंका एक
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मोतीखेत फकीरा के ए, तभे बतात अपन अधिकार।
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तोर पास हे भूमि गंज अक, मोती खेत के मोह ला छोड़
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एके गोड़ खजूर के टूटत, तब ले चलत सरसरा ठीक।”
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सोनसाय हा रुपिया हेरिस, पटवारी ला पकड़ा दीस
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कहिथय -“मोर बात ला चुप सुन, मोतीखेत हा उत्तम खेत।
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जइसे तन मं आंख हाथ मुड़, यने सुरक्षित हे हर अंग
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मगर प्राण के बिना व्यर्थ सब, यने प्राण के बहुत महत्व।
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मोतीखेत मोर बर जीवन, ओला तंय कर हक मं मोर
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मंय भुंइया के लाभ ला पाहंव, तुम रुपिया के नफा कमाव।”
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धन मं होथय नंगत ताकत, जउन कराय बहुत कम मीत
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आत्मा ठोकर देथय तब ले- करथय मनसे गलत अनीति।
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पटवारी हा कुटिल हंसी हंस, कहिथय- “ककरो पक्ष नइ लेंव
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शासन के वेतन खावत हंव, तब चलिहंव शासन के नीति।
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तुम “सीमांकन” करा लेव झप, वाजिब तथ्य हो जाहय ज्ञात
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मोतीखेत सही मं जेखर, भूमि हा जाहय ओकर हाथ।
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एकर साथ बुता तंय ए कर – पंच ला धर के लेगव साथ
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कभू कभार उठाहयझंझट, दिहीं पंच मन सही जवाब।”
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सोनसाय हा परस ला नेमिस, परस पंच मन ला धर लैस
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उहां अैन अंकालू मुटकी, केड़ू घंसिया झड़ी लतेल।
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पटवारी ला केड़ू हा कहिथय- “तंय हमला बलाय हस कार
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हमर पास का बुता हे आखिर- एकर सही ज्वाप तुम देव?”
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पटवारी हा बोलिस कुछ हंस- “मोतीखेत ला जानत खूब
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सोनसहाय फकीरा दूनों, ओकर पर बतात अधिकार।
 
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12:28, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

तभे देंह मं फूर्ति लगत-मंय बइठ खांव नइ खाना।
तभे अटकिहय काम-बुताही ए जीवन के बाती।
“तंय बुजरुक रटाटोर कमावत, तब मंय हंव भरपूर जवान
तोर प्रेरणा ले उत्साहित, महिनत ला करिहंव प्रण ठान”
सुखी हा अपने रद्दा रेंगिस, सोनसाय निकलिस ए ओर
फइले रिहिस बबूल के डाली, काँटा हा फइले सब ओर।
ओकर गोड़ चभक गिस कांटा, सोनू दरद मं करथे हाय
कांटा ला हेरे बर सोचिस, पर असफल चल दीस प्रयास।
मण्डल हा सुद्धू पर बिफड़िस – “दरद बढ़ाय धरे हस राह
कांटा ला बगराय सबो तन, ताकि मरय मनसे अनजान।
यद्यपि तंय कांटा गड़ास नइ, तब तंय कहां ले पाबे दोष
बिगर जीव के बपुरा कांटा, फोकट हो जाहय बदनाम।
पर मंय हा दिग्भ्रमित होंव नइ, समझत खूब कपट के चाल
पैर मं कांटा टूटिस रट ले, लहुट जहय गुखरु के घाव।
मोर पांव हा पंगु हो जाहय, चले फिरे बर मंय असमर्थ
मंय स्पष्ट जवाब मंगत हंव – का कारण दुश्मनी उठाय?”
सुद्धू कथय -“भड़क झन मण्डल, तर्क वितर्क के वन झन घूम
तोर मोर शत्रुता कहां कुछ, नइ पहुंचांव दर्द तकलीफ।
तोर पांव मं कांटा गड़ गिस, ओहर तो बस धोखा आय
मोर पास चिमटा पिन तेमां, कांटा ला झप देत निकाल।”
सोनसाय के पांव ला राखिस, सुद्धू निज घुटना पर जल्द
पैर मं कांटा घुसे जउन कर, पिन से कोड़ हलावत खूब।
कांटा हिल के ऊपर आइस, चिमटा मं निकाल दिस खींच
अपन हथेली कांटा ला रख, सोनू ला बन नम्र देखात।
कहिथय- “कांटा बाहिर आ गिस, अपन फिकर ला तंहू निकाल
व्यर्थ गोठशत्रुता बढ़ाथय, फइलत अमर बेल कस नार।”
सोनसाय हा कहिथय रोषहा – यद्यपि कांटा हा निकलीस
लेकिन ओकर दर्द शेष अभि, जेहर कभू मिटन नइ पाय।
मंय अहसान तोर नइ मानों, निंदा लइक तोर सब चाल
कुआं गिराके फेर निकालत, ओहर कहां आय उपकार!
ओहर आय बड़े हत्यारा, प्राण हरे बर उदिम उचैस
तइसे दुख पीरा बांटे हस, करिहय कोन तोर तारीफ?”
सोनसाय हा उहां ले हटगे, आगू बढ़िस थोरकिन दूर
परस आत टपटप ओकर बल, जउन हा हंफरत लेवत सांस।
परस किहिस- “मंय तोला खोजत, तोर एक ठक मोतीखेत
ओमां नांगर चलत रिहिस तब, उहें फकीरा खब ले अैस।
ओहर रेंगत नांगर रोकिस -“एहर आय मोर प्रिय खेत
सोनू के अधिकार इहां नइ, तुम्मन निकल जाव चुपचाप।”
सोनू मानो सोय ले उठगे, कथय झकनका कर के रोष-
“मोतीखेत आय मोरेच बस, कोन कथय दूसर के आय?
अगर फकीरा हक बतात तब, चल तो देखंव ओकर टेस
ओकर नसना टोर के रहिहंव, तभेच मोर चोला हा जूड़।
मंय हा पटवारी तिर जावत उही दबाहय पाती।
नाप जोख के उही बताहय – कोन करत गद्दारी।
सोनू हा पटवारी तिर गिस, स्वार्थ सिधोय चलिस हे चाल-
“शिक्षक अगर करत आमंत्रित, अस्वीकार तभो ले ठीक।
अगर नर्स हा करत नमस्ते, उहू ला ठुकरा सकत बलात
पर पटवारी मन हा चुम्बक, आत तुम्हर तिर बिगर बलाय।
कृषक के भाग्य तुम्हर तिर होथय, नक्शा कंघी लौह जरीब
जिलाधीष अव गांव के तुम्मन, सुनना परत जमों आदेश।”
पटवारी हां हंस के बोलिस- “मोर प्रशंसा झन कर व्यर्थ
मंय अकास मं उड़त गरब कर, अगर काम तब कहि दे साफ।?”
सोनू कथय -“तंहू जानत हस-हवय एक ठक मोतीखेत
ओमां अन्न उपजथय गसगस, नाम धरे तब मोतीखेत।
गीन भृत्य मन धान बोय बर, ओमन उहां करत हें जोंत
तभे फकीरा उंहचे पहुंचिस, काम के बीच पार दिस आड़”
पटवारी दबके अस बोलिस -“मंहू करत हंव शंका एक
मोतीखेत फकीरा के ए, तभे बतात अपन अधिकार।
तोर पास हे भूमि गंज अक, मोती खेत के मोह ला छोड़
एके गोड़ खजूर के टूटत, तब ले चलत सरसरा ठीक।”
सोनसाय हा रुपिया हेरिस, पटवारी ला पकड़ा दीस
कहिथय -“मोर बात ला चुप सुन, मोतीखेत हा उत्तम खेत।
जइसे तन मं आंख हाथ मुड़, यने सुरक्षित हे हर अंग
मगर प्राण के बिना व्यर्थ सब, यने प्राण के बहुत महत्व।
मोतीखेत मोर बर जीवन, ओला तंय कर हक मं मोर
मंय भुंइया के लाभ ला पाहंव, तुम रुपिया के नफा कमाव।”
धन मं होथय नंगत ताकत, जउन कराय बहुत कम मीत
आत्मा ठोकर देथय तब ले- करथय मनसे गलत अनीति।
पटवारी हा कुटिल हंसी हंस, कहिथय- “ककरो पक्ष नइ लेंव
शासन के वेतन खावत हंव, तब चलिहंव शासन के नीति।
तुम “सीमांकन” करा लेव झप, वाजिब तथ्य हो जाहय ज्ञात
मोतीखेत सही मं जेखर, भूमि हा जाहय ओकर हाथ।
एकर साथ बुता तंय ए कर – पंच ला धर के लेगव साथ
कभू कभार उठाहयझंझट, दिहीं पंच मन सही जवाब।”
सोनसाय हा परस ला नेमिस, परस पंच मन ला धर लैस
उहां अैन अंकालू मुटकी, केड़ू घंसिया झड़ी लतेल।
पटवारी ला केड़ू हा कहिथय- “तंय हमला बलाय हस कार
हमर पास का बुता हे आखिर- एकर सही ज्वाप तुम देव?”
पटवारी हा बोलिस कुछ हंस- “मोतीखेत ला जानत खूब
सोनसहाय फकीरा दूनों, ओकर पर बतात अधिकार।