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"गरीबा / लाखड़ी पांत / पृष्ठ - 7 / नूतन प्रसाद शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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मुसका मुचमुच कथय फकीरा -“”तंय लालची बहुत हुसियार
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धनवा के घर देखेस जेवन, उहां खाय ओंड़ा के आत।
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ढेरा पटुवा पाय मोर घर, तब “गेंरवा’ बनाय कहि देस
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ठीक हे भई “गेंरवा’ बनात हंव, तोर बात के होवत मान।”
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धरिस फकीरा हा ढेरा ला, पटुवा गुच्छ ला दाबिस कांख
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गुच्छा ले पटुवा ला हेरिस, ढेरा मं फांसिस तत्काल।
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ढेरा ला घुमात ताकत कर, डोरी के होवत निर्माण
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करत फकीरा हा कंस मिहनत, साफ दिखत छाती के पांत।
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कड़कड़ आंट चढ़िस डोरी मं, फेर पूर के “भांज’ चढ़ैस
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बाद कंसाकस फांसा मारिस, डोरी तिन भंजन बन गीस।
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नरियर बूच मं सोंट साफ कर, गेंरवा बांधिस मुड़ी ला बांध
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जउन काम के उदिम उचाइस, आखिर देखा दीस कर पूर्ण।
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दीस फकीरा हा रमझू ला, अदक नवा गेंरवा बस एक
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कहिथय -“”श्रम मं देह पिराथय, पर वास्तव मं मिलथय लाभ।
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धनवा के घर खूब खाय हंव, एकर कारण असमस पेट
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पर मिहनत मंय हंफर करे हंव, हल्का असन पोचक गे पेट।”
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रमझू कथय -“”मिहनती हस तंय, वृद्ध होय जस बर के पेड़
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पर तंय कभू व्यर्थ बइठस नइ, तभे ठोस हे अब तक देह।
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जे मनसे मिहनत ले भगथय, रहन सकय नइ कभू निरोग
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अनबन रोग मं फदके रहिथय, आखिर मरत बिपत ला भोग।”
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रमझू पूछिस -“”बता भला तंय – तंय हा करबे बइठ अराम
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या कोई अउ काम बचे हे, तेला भिड़के करबे पूर्ण।”
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कथय फकीरा -“”जलगस जीवन, तलगस मिहनत सक भर काम
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हमर इहां हे मोट्ठा लकड़ी, पर बारे बर मुश्किल होत।
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ओमन ला मंय पतला चिरहूँ, ताकि होय बारे के लैक
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लकड़ी सिपच के बरही भरभर, बारत तेन कष्ट झन पाय।”
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“”तंय हा अब लकड़ी ला चिर भिड़, मंय हा जावत खुद के गांव”
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अइसे बोल निकल गिस रमझू, करत फकीरा भिड़ के काम।
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लकड़ी चीरत हवय फकीरा धर के घन अउ टांचा।
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साथ मं टंगिया छिनी मदद बर ताकि रुकय झन बूता।
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लकड़ी ला लकड़ी पर रखथय, टंगिया मार बनैस सुराख
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छिनी घुसा के – लगा निशाना, ओकर पर घन मारत ठोस।
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लकड़ी कतका एेंठ बतावय, फर फर फटत लगत बर्रास
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पात फकीरा के काम सफलता, ओकर मन उमंग उत्साह।
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निपटा काम फकीरा बइठिस, पटका मं पोंछत श्रम बूंद
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दुनों हथेली भर फोरा हे, तेला देखत टकटक आंख।
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ओकर पुत्र सनम हा पहुंचिस, जउन बुड़े हे दुख के ताल
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ओकर डहर हथेली रखथय, ताकि देख ले फट ले साफ।
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कथय फकीरा -“”देख हथेली, फोरा उपके हे कई ठोक
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चंगचिंग दरद हाथ भर घुमरत, मिहनत के तंय देथ कमाल!”
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सनम निकालिस गोठ टेचरही -“”तोर हाथ फोरा पर जाय
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मिहनत मं चुर चुर थक जावस, या फिर दरद मं कल्हरत जास।
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तोर प्रशंसा कभू करंव नइ, तंय हा भोग खूब तकलीफ
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तंय हा जइसे कर्म करे हस, फल ला चीख उही अनुसार।”
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परिस फकीरा हा अचरझ मं -“”तंय हा विकृति कहां ले लाय
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तोर दिमाग गरम हे काबर – बिन छल कपट तंय फुरिया साफ
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“”सोनसाय हा बना के राखिस, अपन पुत्र बर धन बेशुमार
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तब तो धनवा हा सब झन ला, देइस नेवता झारझार।
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धनवा कतको खर्चा करही, मिलिहय तभो दूध घी भात
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पर तंय पूंजी नइ जोड़े हस, मारत हे अभाव हा लात।
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चरचर परत हाथ भर फोरा, तभे पेट मं अन्न बोजात
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करे हवस तंय हा चण्डाली, ओकर दुख हम भोगत आज।”
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गोठिया सनम हा मुंह ओथरा लिस, दांत काट फेंकत नाखून
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वृद्ध फकीरा थथमरात अब, मानों – ओकर उसलत खाट।
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जीवन भर सिद्धान्त बनाइस, एक घरी मं होवत नाश
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जइसे बंधिया फूट जथय तंह, जमों नीर हा बोहा खलास।
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कथय फकीरा -“”तंय भोजन कर – हेर बड़े टाठी भर भात
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पेट जहां पोटपिट ले होवय, तब फिर बाद हाथ कर साफ।”
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डोकरा के अंटियहा गोठ सुन, सनम भड़क गे कर के रोष-
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“”धनवा घर के नेवता मं मंय, हाही बुतत ले लेंव दमोर।
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ओंड़ा तक ले अन्न बोजाये, कइसे सहय पेट अउ भार
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तंय हा अटपट काबर बोलत – जब कि हवस बुजरूक हुसियार?”
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जइसे मारे जथय दंतारी, कोरलग असन पाग ला देख
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काबर चूक फकीरा जावय, जब सपड़ाय सुघर अक टेम।
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कथय फकीरा -“”तंय हा जइसे, सक बाहिर अनाज नइ खास
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उसने मंय जरूरत ले बाहिर, धन नइ रखेंव स्वयं के पास।
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पर के बांटा के अनाज ला, तंय खाये बर कनुवा गेस
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मंय हा स्वयं के स्वार्थ पूर्ति बर, करन पाय नइ पर के घात।
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सोनसाय – सुद्धू अउ मंय हा, एक गांव के अन इन्सान
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सुद्धू – मोर राह एके ठन, पर सोनू मचैस कंस लूट।
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बर के पेड़ – चरोटा अउ अन, जाम खड़ा होथंय संग एक
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लेकिन बर हा शोषक होथय, पर के वृद्धि करत हे छेंक।
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मात्र अपन उन्नति बर करथय – पाट के भाई के नुकसान
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रस अउ जगह झटक के होथय, कई काबा के रूख बड़े जान।
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इसने पर के हक ला झींकिस, सोनसाय हा सकलिस माल
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हम सब ला अपने माने हन, निछन पाय नइ ककरो खाल।”
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रखिस फकीरा हा सुतर्क तंह, सनम के शंका सब मिट गीस
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निंदई करे ले खेत हा सुधरत, बन दूबी के घुसरत टेस।
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सनम हा उठ नांगर सम्हरावत, करना हे ओलहा के काम
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दूसर दिन हा आय चहत तंह, सनम छोड़ दिस करे अराम।
 
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15:11, 7 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

मुसका मुचमुच कथय फकीरा -“”तंय लालची बहुत हुसियार
धनवा के घर देखेस जेवन, उहां खाय ओंड़ा के आत।
ढेरा पटुवा पाय मोर घर, तब “गेंरवा’ बनाय कहि देस
ठीक हे भई “गेंरवा’ बनात हंव, तोर बात के होवत मान।”
धरिस फकीरा हा ढेरा ला, पटुवा गुच्छ ला दाबिस कांख
गुच्छा ले पटुवा ला हेरिस, ढेरा मं फांसिस तत्काल।
ढेरा ला घुमात ताकत कर, डोरी के होवत निर्माण
करत फकीरा हा कंस मिहनत, साफ दिखत छाती के पांत।
कड़कड़ आंट चढ़िस डोरी मं, फेर पूर के “भांज’ चढ़ैस
बाद कंसाकस फांसा मारिस, डोरी तिन भंजन बन गीस।
नरियर बूच मं सोंट साफ कर, गेंरवा बांधिस मुड़ी ला बांध
जउन काम के उदिम उचाइस, आखिर देखा दीस कर पूर्ण।
दीस फकीरा हा रमझू ला, अदक नवा गेंरवा बस एक
कहिथय -“”श्रम मं देह पिराथय, पर वास्तव मं मिलथय लाभ।
धनवा के घर खूब खाय हंव, एकर कारण असमस पेट
पर मिहनत मंय हंफर करे हंव, हल्का असन पोचक गे पेट।”
रमझू कथय -“”मिहनती हस तंय, वृद्ध होय जस बर के पेड़
पर तंय कभू व्यर्थ बइठस नइ, तभे ठोस हे अब तक देह।
जे मनसे मिहनत ले भगथय, रहन सकय नइ कभू निरोग
अनबन रोग मं फदके रहिथय, आखिर मरत बिपत ला भोग।”
रमझू पूछिस -“”बता भला तंय – तंय हा करबे बइठ अराम
या कोई अउ काम बचे हे, तेला भिड़के करबे पूर्ण।”
कथय फकीरा -“”जलगस जीवन, तलगस मिहनत सक भर काम
हमर इहां हे मोट्ठा लकड़ी, पर बारे बर मुश्किल होत।
ओमन ला मंय पतला चिरहूँ, ताकि होय बारे के लैक
लकड़ी सिपच के बरही भरभर, बारत तेन कष्ट झन पाय।”
“”तंय हा अब लकड़ी ला चिर भिड़, मंय हा जावत खुद के गांव”
अइसे बोल निकल गिस रमझू, करत फकीरा भिड़ के काम।
लकड़ी चीरत हवय फकीरा धर के घन अउ टांचा।
साथ मं टंगिया छिनी मदद बर ताकि रुकय झन बूता।
लकड़ी ला लकड़ी पर रखथय, टंगिया मार बनैस सुराख
छिनी घुसा के – लगा निशाना, ओकर पर घन मारत ठोस।
लकड़ी कतका एेंठ बतावय, फर फर फटत लगत बर्रास
पात फकीरा के काम सफलता, ओकर मन उमंग उत्साह।
निपटा काम फकीरा बइठिस, पटका मं पोंछत श्रम बूंद
दुनों हथेली भर फोरा हे, तेला देखत टकटक आंख।
ओकर पुत्र सनम हा पहुंचिस, जउन बुड़े हे दुख के ताल
ओकर डहर हथेली रखथय, ताकि देख ले फट ले साफ।
कथय फकीरा -“”देख हथेली, फोरा उपके हे कई ठोक
चंगचिंग दरद हाथ भर घुमरत, मिहनत के तंय देथ कमाल!”
सनम निकालिस गोठ टेचरही -“”तोर हाथ फोरा पर जाय
मिहनत मं चुर चुर थक जावस, या फिर दरद मं कल्हरत जास।
तोर प्रशंसा कभू करंव नइ, तंय हा भोग खूब तकलीफ
तंय हा जइसे कर्म करे हस, फल ला चीख उही अनुसार।”
परिस फकीरा हा अचरझ मं -“”तंय हा विकृति कहां ले लाय
तोर दिमाग गरम हे काबर – बिन छल कपट तंय फुरिया साफ
“”सोनसाय हा बना के राखिस, अपन पुत्र बर धन बेशुमार
तब तो धनवा हा सब झन ला, देइस नेवता झारझार।
धनवा कतको खर्चा करही, मिलिहय तभो दूध घी भात
पर तंय पूंजी नइ जोड़े हस, मारत हे अभाव हा लात।
चरचर परत हाथ भर फोरा, तभे पेट मं अन्न बोजात
करे हवस तंय हा चण्डाली, ओकर दुख हम भोगत आज।”
गोठिया सनम हा मुंह ओथरा लिस, दांत काट फेंकत नाखून
वृद्ध फकीरा थथमरात अब, मानों – ओकर उसलत खाट।
जीवन भर सिद्धान्त बनाइस, एक घरी मं होवत नाश
जइसे बंधिया फूट जथय तंह, जमों नीर हा बोहा खलास।
कथय फकीरा -“”तंय भोजन कर – हेर बड़े टाठी भर भात
पेट जहां पोटपिट ले होवय, तब फिर बाद हाथ कर साफ।”
डोकरा के अंटियहा गोठ सुन, सनम भड़क गे कर के रोष-
“”धनवा घर के नेवता मं मंय, हाही बुतत ले लेंव दमोर।
ओंड़ा तक ले अन्न बोजाये, कइसे सहय पेट अउ भार
तंय हा अटपट काबर बोलत – जब कि हवस बुजरूक हुसियार?”
जइसे मारे जथय दंतारी, कोरलग असन पाग ला देख
काबर चूक फकीरा जावय, जब सपड़ाय सुघर अक टेम।
कथय फकीरा -“”तंय हा जइसे, सक बाहिर अनाज नइ खास
उसने मंय जरूरत ले बाहिर, धन नइ रखेंव स्वयं के पास।
पर के बांटा के अनाज ला, तंय खाये बर कनुवा गेस
मंय हा स्वयं के स्वार्थ पूर्ति बर, करन पाय नइ पर के घात।
सोनसाय – सुद्धू अउ मंय हा, एक गांव के अन इन्सान
सुद्धू – मोर राह एके ठन, पर सोनू मचैस कंस लूट।
बर के पेड़ – चरोटा अउ अन, जाम खड़ा होथंय संग एक
लेकिन बर हा शोषक होथय, पर के वृद्धि करत हे छेंक।
मात्र अपन उन्नति बर करथय – पाट के भाई के नुकसान
रस अउ जगह झटक के होथय, कई काबा के रूख बड़े जान।
इसने पर के हक ला झींकिस, सोनसाय हा सकलिस माल
हम सब ला अपने माने हन, निछन पाय नइ ककरो खाल।”
रखिस फकीरा हा सुतर्क तंह, सनम के शंका सब मिट गीस
निंदई करे ले खेत हा सुधरत, बन दूबी के घुसरत टेस।
सनम हा उठ नांगर सम्हरावत, करना हे ओलहा के काम
दूसर दिन हा आय चहत तंह, सनम छोड़ दिस करे अराम।